Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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| भद्रबाहु संहिना |
अनामिका के विच कोई अंतरन हो तो (तरुणतणे सुक्ख) युवा अवस्था में सुख की प्राप्ति होती है।
भावार्थ-प्रदेशिनी और मध्यमा अंगुली के बीच कोई अन्तर न हो तो समझो वह व्यक्ति बालकपने में सुख की प्राप्त करता है। इस के बारे में वराहमिहर ने ऐसा कहा है कि यदि हाथ की अंगुलियां लम्बी हो तो मनुष्यदीर्घ जीवी होता है। सीधी अंगुलिया वाला मनुष्य सुभगों की प्राप्ति करता है सुक्ष्म और पतली अंगुलियों वाला मनुष्य बुद्धिमान होता है। चपटी अंगुलियां वाला दूसरों की सेवा करता है, मोटी अंगुलियों वाला मनुष्य दरिद्र ही होता है, बाहर की और अंगुलियाँ अगर झुकी हुई हो तो उनका मरण शस्त्र से होता है। विरली अंगुलियाँ जिसकी हो वह भी निर्धन होता है। सघन अंगुलियाँ वाला मनुष्य धन संचय करने वाला होता है। ।। ४॥
पावइ पच्छा सुक्खं कणिट्ठि आणमि अंतर घणम्मि।
सव्वंगुलीधणम्मि अ होइ सुहीधणसमिद्धो अ॥५॥ (कणिष्टिआणम्मेि अंतर घणम्मि) यदि कनिष्ठ का अंगुलियों व अनामिका के बीच सघन अंतर हो तो समझो (पच्छापाव सुक्खं) पीछे की उमर में वह मनुष्य सुख पाता है। और (सव्वगुलीघणम्मि) यदि सब अंगुलियों के बीच छिद्र न हो तो अर्थात् सघन हो तो (अहोइसुहीघणसमिद्धोअ) वह सुखी होता है और धनादिक से समृद्धि शाली होता है।
भावार्थ- यदि इसी प्रकार कनिष्ठा अंगुली के व अनामिका अगुली के बीच कोई अंतर न हो व सधन अर्थात् छिद्र रहित हो तो वह मनुष्य बुढापे में सुख पाता है उसी प्रकार सभी अंगुली या सघन हो छिद्र रहित हो तो समझो वह सुखी और धन से समृद्धिशाली होता है। यहाँ पर सघन अंगुलियों का अर्थ अंगुलियों के बीच में कोई अंतर नहीं हो अर्थात् छिद्र न हो।५।।। अब अंगुलियों के पर्वो का फल व अंगुलियों का फल कहते हैं।
सम्मसंगुलिपव्वो पुरिसो थणवं सुही सया हाइ। जइ सो अमंसपब्वो ता तस्स सिरी ण संभवड़॥६॥
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