Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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| भद्रबाहु संहिता |
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जब रेखा साफ तथा स्पष्ट हो लेकिन बहुत-सी छोटी-छोटी रेखायें उनमें से निकलती हो तो शादी के लिए इच्छा तक मुसीबतें, जो कि दूसरे साथी की नाजुकता तथा बुरे स्वास्थ्य के कारण होती है (5 चित्र 17)1
जब रेखा अन्त में टेढ़ापन लिए हो और इस टेढ़ेपन में कोई गुण का चिह्न या रेखा (2 चित्र 18) काटती हो तो उसके साथी की किसी घटना से या किसी प्रकार की आकस्मिक बीमारी से मृत्यु हो जाती है लेकिन जब शादी की रेखा एक घुमाव के साथ हृदय रेखा में समाप्त होती हैं। तो साथी की मृत्यु लगातार कई दिनों की बीमारी से होती है।
जब रेखा के आरम्भ में एक द्वीप हो तो शादी बहुत दिनों के लिए रुक जाती हैं। और दोनों आदमी शादी के पश्चात् पृथक् हो जाते हैं।
जबकि द्वीप रेखा के अन्त में हो तो गृहस्थ जीवन के मध्य में कोई बड़ी मुसीबत या वियोग हो जाता हैं। (3 चित्र 18)
जबकि द्वीप रेखा के अन्त में पाया जाए है तो शादी मुसीबत और एक-दूसरे के वियोग में समाप्त होगी।
जब शादी की रेखा जिह्वाकार (4 चित्र 18) हो तो दोनों मनुष्य एक-दूसरे से अलग रहते हैं। लेकिन जब जिह्वा नीचे हृदय रेखा की ओर मुड़ती है तो कानून न वियोग होगा। (5 चित्र 18)
जब जिला बहुत दबी हुई हो और नीचे हाथ की ओर अधिक झुकती हैं तो तलाक की आशा की जा सकती है और विशेष कर जबकि जिह्वा का एक सिरा शुक्र के मैदान की ओर फैला हो या शुक्र के उभार की ओर हो (5 चित्र 18)
बहुत दिशाओं में एक सुन्दर रेखा बीच हथेली को काटती हुई शादी रेखा को जाती हुई पाई जाती है। ऐसी दशा में तलाक तथा स्वतन्त्रता के लिए गहन लड़ाई हो जाती है। ऐसी दशा में पश्चाताप को स्थान नहीं होता।
जबकि शादी रेखा द्वीपों से भारी हो या जंजीरदार हो तो ऐसे मनुष्य को सूचना दी जाती है कि वह किसी भी समय शादी न करें क्योंकि ऐसी शादी सदा दुःखपूर्ण तथा वियोग पूर्ण होगी।