Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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| भद्रबाहु संहिता |
___ 1. अंगुलियों के अग्रभाग (नखवाले पर्व) जितने पतले हों-उतने ही अधिक शुभत्व।
2. गाँठ-रहित ऐसी अंगुलियां जो टेढ़ी-मेढ़ी न हों- शुभ। 3. कोमल-त्वचा युक्त एवं पृष्ठ भाग पर रोम एवं खुरदरेपन से रहित-शुभ
4. गोलाकार अंगुलियां, जिनमें अंगूठी, छल्ला आदि पहनने पर छिद्र दिखाई न दे-शुभ।
5. समान लम्बाई के पर्यों वाली अंगुलियां---शुभ। ____6. चपटी, बहुत मोटी, सूखी तथा पृष्ठ भाग पर रोम युक्त–अशुभ।
7. बहुत छोटी, पतली, अधिक लाल रंग वाली एवं विरल अंगुलियां-रोगदात्री। ___8. छोटी तथा विरल अंगुलियां--पति के संचित धन का नाश।
पाश्चात्य विद्वानों ने (1) उद्गम स्थान (2) बनावट, (3) लम्बाई, (4) पों की लम्बाई, (5) अग्रभाग, (6) लचीलापन, (7) गाँठ, (8) फैलाव तथा झुकाव, (9) पारस्परिक अंतर तथा (10) अन्य स्थितियों को आधार मानकर अंगुलियों का निम्नानुसार विश्लेषण किया है
___ 1. उद्गम स्थान—(1) यदि कोई अंगुली अपने उचित उद्गम स्थान की अपेक्षा अधिक नीचे आरंभ हुई हो तो उसकी शक्ति न्यून समझनी चाहिए, (2) यदि कुछ अधिक ऊँचाई से आरंभ हुई हो तो उसकी शक्ति अधिक समझनी चाहिए, (3) यदि सभी अंगुलियां उचित स्थान से आरंभ हुई हों तो उन्हें शुभ समझना चाहिए।
2. बनावट-(1) यदि सभी अंगुलियां सीधी, पुष्ट तथा औसत लम्बाई की हों तो शुभ होती है, (2) लम्बी अंगुलियों वाले जातक सुस्त, मतलबी, शक्की-मिजाज तुनुक-मिजाज, मायावी, धूर्त, विश्वासघाती, अविश्वासी, कायर, वस्त्राभूषण तथा चाल-ढाल के बारे में अधिक सतर्क रहने वाले, दिखावटी, शांतिप्रिय, किसी भी विषय पर शीघ्र निर्णय न ले सकने वाले, प्रत्येक विषय के विस्तार में जाने वाले तथा मन-ही-मन बेचैन रहने वाले, होते हैं। यदि मंगल क्षेत्र उन्नत तथा मस्तक-रेखा बलवान हो तो इन दुर्गणों में कुछ कमी आ जाती है। (3) अधिक