Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता ।
हथेली के बीच में से शुरु जबकि भाग्य रेखा हथेली के बीच से आरम्भ हो जो कि शुक्र का मैदान कहलाता है, तो वह मुश्किल का आरम्भिक जीवन हैं और उस मनुष्य को अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सदा झगड़ना पड़ेगा, लेकिन यदि रेखा साफ तथा मजबूत हो और एक शाखा सूर्य के उभार की ओर को हो तो मानव अपने भाग्य का रथ ही निर्माता होगा तथा बिना किसी की सहायता और केवल अपने गुणों तथा मानवीय कार्यों से सफलता प्राप्त करेगा। जबकि भाग्य रेखा मस्तक रेखा से आरम्भ हो और जब वह अच्छी प्रकार से बनी हो तो हर एक वस्तु उस मनुष्य के जीवन में बाद में आवेगी वह भी केवल उसी के दिमाग से।
जबकि भाग्य रेखा में एक शाखा मंगल के उभार की ओर को और दूसरी चन्द्रमा के उभार की और {1-1 चित्र ) हो तो उस मनुष्य का जीवन एक नवीनता तथा जोश को लिए होगा जिससे कि सारा भाग्य हिल उठेगा।
यदि भाग्य रेखा स्वयं ही जीवन रेखा के अन्दर से मंगल के उभार पर निकल आये (2-2 चित्र 13) तो अधिक प्रेम जीवन पथ पर प्रभाव डालेगा और ऐसा देखा गया है कि ऐसे मनुष्य अक्सर ऐसे मनुष्यों से प्रेम करने लगते हैं जो कि असम्भव से हैं या ऐसों से जबकि शादी शुदा हैं या ऐसे जबकि उस प्रेम को न दे सकें जबकि उसे दूसरा चाहता हैं स्त्रियों के हाथ में यह प्रेमचिन्ह बुरा हैं।
___ जबकि भाग्य रेखा टूटी हुई हो तो जीवन मुसीबतों दुःखों तथा कुछ नहीं से भरपूर होता है जिनको कि वह मनुष्य भाता है और कोई भी जब तक कि वे अपनी सफलता को पायें नहीं रुकेगा।
__ भाग्य रेखा का टूटना सदा ही बुरा चिन्ह नहीं है जब तक कि एक शिखा दूसरी के सामने शुरु होती है ऐसी दशा में वह स्थिति तथा वातावरण में पूर्ण परिवर्तन बतलाती है और यदि नई रेखा (टूटने के) (पश्चात्) अच्छी तथा सीधी दिखाई दे तो वह परिवर्तन उस तिथि को जबकि दूसरा भाग शुरु होता है। स्थिति की उन्नति के बारे में होगा।
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