Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
तथा मर्यादा का अस्वाभाविक ऊंचा स्थान रखते हैं वे यह इच्छा रखते हैं कि उनके साथ रहने वाले मनुष्य, सफल, उदार तथा बड़े हों वे बहुत कम अपने जीवन के ( ) प्लेटफार्म के नीचे शादी करते हैं और सब श्रेणी के मनुष्यों की अपेक्षा कम प्रेम सम्बन्ध ( ) रखते हैं। यदि वे एक बार असल में प्रेम करते हैं तो सदा के लिए करते हैं वे दूसरी शादी में विश्वास नहीं रखते और वे बहुत कम तलाक देते हैं।
प्रथम तथा दूसरी अंगुली के बीच की जगह से शुरू होने वाली रेखा स्नेह सम्बन्धी कार्यों में एक अधिक शान्त किन्तु गम्भीर प्रकृति बतलाती हैं (3 चित्र 16)
ऐसे मनुष्य वृहस्पति की दी हुई घमण्ड तथा आदर्श के बीच ही मध्यस्थता के विपरीत (Strike) ठप्पा लगा देते हैं और जब रेखा शनि से आरम्भ होती हैं तो अधिक स्वार्थी प्रेम प्रकृति बतलाती हैं वे प्रेम में अधिक प्रामाणिक नहीं होते लेकिन जिनको वे चाहते हैं उनके लिए बड़े से बड़ा बलिदान करने को तैयार रहते हैं। वे जिस मनुष्य को प्यार करते हैं, यह नहीं चाहते कि वह देवी अथवा देवता ही हो। जब हृदय-रेखा शनि के उभार से आरम्भ होती हैं तो वह मनुष्य प्रेम के मामलों में अधिक स्वार्थी होता हैं (4 चित्र 16) पहले मनुष्यों की तरह ये लोग अपने को बलिदान नहीं कर सकते वे अपने ही में रहने वाले अप्रमाणिक तथा कुटिल होते हैं लेकिन जिसको वे चाहते हैं उसे लेने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं वे अपने रास्ते में किसी को खड़ा नहीं होने देते लेकिन एक बार अपने लक्ष्य को पाने पर बहुत कम नाजुकता दयालुता या त्याग दिखाते हैं यदि वह अपने साथी के विषय में कोई त्रुटि देखते हैं तो वह बहुत कठोर होते हैं लेकिन जैसा कि वे अपने तक होते हैं अपने अवगुणों की ओर से आँख बन्द रखते हैं? शनि के उभार के नीचे से आरम्भ जीवन-रेखा (5 चित्र 16) सब छोड़ने की प्रकृतियाँ दिखाती हैं लेकिन बहुत ही प्रचण्ड रुप में वे अपने ही लिए जीवित रहते हैं तथा उनके चारों और के मनुष्य खुश हैं या नहीं, यह नहीं सोचते?
हृदय रेखा जितनी भी होती है उतने ही कम प्रेम के उच्च भाव होते हैं? जबकि हृदय-रेखा बहुत लम्बी हो तो वह दाह तथा जलन के प्रति बहुत