Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
यदि भाग्य की रेखा से कोई भी शाखा किसी भी उभार की ओर जाती हो तो भाग्य अधिकतर उस उभार की विशेषताओं से सम्बन्धित होता है।
उदाहरणार्थ यदि ऐसी रेखा बृहस्पति की ओर को जाती हो (6-6 चित्र 11) तो मनुष्य उत्तरदायित्व दूसरों के ऊपर शासन करने की शक्ति और कोई उच्च स्थान जो कि उस वर्ष मिलेगा जिस वर्ष यह शाखा फूटती है पाता है यदि ऐसी रेखा अपना रास्ता चलती रहती है तथा बृहस्पति के उभार तक पहुँच जाती है तो यह किसी विशेष लक्ष्य या मतलब के लिए सफलता का बहुत ही चमत्कारपूर्ण चिन्ह
यदि यह शाखा सूर्य के उभार की ओर को जाती है (6-6 चित्र 11) तो सफलता धन तथा जनता जिन्दगी ( की और को होती हैं जो कि उसे नाम तथा यश देती हैं तथा यह सफलता की बहुत ही महत्वपूर्ण निशानी हैं।
यदि शाखा बुध को उभार की ओर को जाती हैं (8-8 चित्र ) तो सफलता किसी विशेष कार्य, जो या तो विज्ञान या व्यापारिक क्षेत्र में हो, उसकी ओर होती
यदि भाग्य की रेखा स्वयं अपने रास्ते अर्थात् शनि के उभार की ओर न जाकर किसी ओर उभार की ओर हो जाती है तो उसकी सारी जिन्दगी के कार्य उस विशेष उभार की विशेषताओं से जुड़े होंगें किसी दशा में ऐसे निशानों को ठीक तथा निश्चित चिन्ह सफलता के न मान लेने चाहिये जबकि भाग्य रेखा अपना रास्ता रखते हुए भी किसी विशेष उभार की ओर को शाखायें भेजे।
जबकि भाग्य रेखा अकेली बिना किसी शाखाओं के जाती हो तो वह मनुष्य भाग्य का खिलौना होगा तथा वातावरण के लोहपाश से बंधा होगा उसके लिए भाग्य के खेलों को बदलना या उन्हें उनके रास्ते से हटाना असम्भव है। उसे दूसरों से कोई मदद नहीं मिलेगी, यदि थोड़ी बहुत होगी भी तो वह मुश्किल दुःख तथा सन्ताप लाने के अतिरिक्त और कुछ न होगी ऐसी रेखा कभी भी एक अच्छी भाग्य की रेखा नहीं सोची जा सकती भाग्य रेखा के अच्छे होने के लिए उसे गहरी तथा मोटी नहीं होना चाहिए बल्कि साफ तथा स्पष्ट और सबसे अधिक सूर्य की रेखा चाहे वह किसी भी दशा में हो, होनी आवश्यक है।