Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता |
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(16) धनांगुलि—एक दूसरी से सटी हुई अंगुलियां धन-संचय की सूचक
प्रभाव-भारतीय विद्वानों के मतानुसार पुरुष जातक के हाथ की अंगुलियों की विभिन्न बनावटों का प्रभाव निम्नानुसार होता है--
1. विरल अंगुलियां-दारिद्रय। 2. सघन अंगुलियां-धनागम। 3. बिरल तथा रुखी अंगुलिया--दुःख एवं दरिद्र। 4. सीधी अंगुलियां-आयु वृद्धि, शुभ। 5. पतली अंगुलिया स्मरण शक्ति की तीव्रता । 6. चपटी अंगुलियां दास वृत्ति। 7. बहुत मोटी अंगुलियां---निर्धनता। 8. कर पृष्ठ की ओर झुकी अंगुलियां-शस्त्राघात से मृत्यु। 9. विरल पतली, स्थूल अथवा टेढ़ी अंगुलियां—दारिद्र। 10. लम्बी अंगुलियां-अनेक स्त्रियों से समागम। 11. लम्बे पर्व वाली अंगुलियां--धनागम एवं दीर्घायु। 12. लम्बे पर्व वाली अंगुलियां-सौभाग्य।
13. कनिष्ठा का नख अनामिका के दूसरे पर्व से आगे बढ़कर तृतीय पर्व तक पहुंचे अत्याधिक धन ।
14. कनिष्ठा और अनामिका के मध्य छिद्र रहे-वृद्धावस्था में निर्धनता का कारण दु:ख।
15. मध्यमा तथा अनामिका के मध्य छिद्र रहे युवावस्था में दुःख। 16. मध्यमा तथा तर्जनी के मध्य छिद्र रहे—बाल्यावस्था में दुःख। 17. जिन दो अंगुलियों के मध्य छिद्र न हो--जीवन के उस भाग में सुख। 18. जिन दो अंगुलियों के मध्य छिद्र हो--जीवन के उस भाग में दुःख। 19. सभी अंगुलियों के मध्य छिद्र हो-जीवन भर धनाभाव । 20. किसी भी अंगुली में छिद्र न हो—जीवन भर धन सम्पन्नता। 21. तर्जनी तथा मध्यमा परस्पर मिली हो—बाल्यावस्था में धन-सुख।