Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
भद्रबाहु संहिता
तीर्थ-स्थल--प्रत्येक अंगुली में एक-एक तीर्थ का निवास निम्नानुसार होता
1-अंगूठा तथा कनिष्ठा अंगुली के तल में ब्रह्म तीर्थ। 2-अंगूठा एवं तर्जनी के मध्य भाग में—पितृ तीर्थ। 3-सभी अंगुलियों के मूल (निम्न) भाग में—देव तीर्थ । 4-तर्जनी के मूल तथा अग्रभाग में शत्रुञ्जय तीर्थ। 5-अनामिका के मूल तथा अग्रभाग में—अर्बुद तीर्थ। 6–कनिष्ठा के मूल के मणिबंध तक के बहिर्भाग में-ऋषि तीर्थ। 7-अंगूठे के ऊपरी भाग में अष्टापद पर्वत।
राशियाँ-अंगुलियों के विभिन्न पर्यों में द्वादश राशियों का निवास निम्नानुसार माना गया है
(1) कनिष्ठा—प्रथम पर्व में मेष, द्वितीय में वृष, तृतीय में मिथुन । (2) अनामिका प्रथम पर्व में कर्क, द्वितीय में सिंह, तृतीय में कन्या। (3) मध्यमा--प्रथम पर्व में तुला, द्वितीय में वृश्चिक, तृतीय में धनु। (4) तर्जनी-प्रथम पर्व में मकर, द्वितीय में कुम्भ, तृतीय में मीन।
भेद-भारतीय आचार्या ने अंगुलियों के 16 भेद माने हैं, उनके नाम तथा प्रभाव को निम्नानुसार समझना चाहिए
(1) अवसित—ऐसी अंगुलियां सुस्पष्ट होती हैं। ये सौभाग्यसूचक हैं। (2) सूक्ष्म-ऐसी अंगुलियां छोटी होती हैं। ये मेधावी होने की सूचक
(3) सरल तथा दीर्घ-ये दीर्घायु की सूचक हैं। (4) स्थूल-ये निर्धनता की सूचक है।
(5) बहिर्नता—बाहर की ओर झुकी अंगुलियां शस्त्रधारी योद्धा होने की सूचक हैं।
(6) हस्व-चिप्रिटा-छोटी तथा चिपटी अंगुलियां क्षमता की सूचक हैं। (7) चिपिटा-चिपटी अंगुलियां अशुभ सुचक होती हैं। (8) स्फुटा—फटी हुई सी अंगुलियां अशुभ सूचक हैं।