Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
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अविवेकता व मन्द-बुद्धि की प्रतीक हैं। यदि मस्तिष्क-रेखा जीवन रेखा के मध्य से मंगल पर्वत पर निकलती हो तो वह व्यक्ति चिन्तातुर रहता है। यदि यह रेखा सीधी व स्पष्ट हो तो व्यक्ति के सामान्य ज्ञान व व्यवहारिकता की ओर संकेत करती हैं। जब यह रेखा आखिर में से थोड़ी-सी झुकी हुई सी हो तो व्यक्ति में व्यवहारिकता और कल्पना शक्ति दोनों होती हैं। यदि यह चन्द्रमा के पर्वत की तरफ जाती हई हो तो व्यक्ति केवल भावक व कल्पनाशील होता है। यदि मस्तिष्क रेखा अन्त में बुध पर्वत की ओर आये तो व्यक्ति कंजूस प्रवृत्ति का और धन के लिए गलत तरीकों का प्रयोग भी कर सकता हैं। यदि मस्तिष्क व हृदय रेखा जुड़ी हुई (दोनों एक ही रेखा के रूप में) हथेली पर हों तो उस व्यक्ति को गहन अनुभूति शील व उद्देश्य पूर्ण होने की ओर संकेत करती हैं। किन्तु ऐसे व्यक्ति की भाग्य रेखा यदि न हुई तो वह जीवन में नितान्त अमफल होगा दो मस्तिष्क रेखायें महान् मस्तिष्क शक्ति की परिचायक है, और दुर्लभ हैं।
(3) हृदय रेखा–यदि यह रेखा शुक्र पर्वत के मध्य से निकलती हो तो आदर्श व सच्चे प्रेम तथा दिमागी काम प्रवृत्तियों की सूचक हैं। अगर यह रेखा गुरु अंगुली के तले से निकलती हो तो व्यक्ति अपने प्रेमी या प्रेमिका पर शासन करने का प्रयल करेगा। यदि रेखा पहली और दूसरी अंगुली के मध्य से निकले तो व्यक्ति शान्त प्रवृत्ति का होता हैं। ऐसे व्यक्ति काम के समय काम, प्रेम के समय प्रेम करते हैं। और उनको अपने जीवन में बहुत ही संघर्ष करना पड़ता हैं। यदि यह रेखा पहली दूसरी अंगुली के मध्य से निकलती हुई बीच में से मुड़कर नीचे की ओर जाये तो व्यक्ति के ठोस शारीरिक काम प्रवृत्ति की ओर संकेत करती हैं यह रेखा शनि के उभार के पास से शुरू होती हो तो वह मनुष्य प्रेमी स्वार्थी और काम प्रधान होता हैं।
(4) भाग्य रेखा- यह रेखा विभिन्न स्थानों से निकलती हुई निश्चय रूप से शनि के पर्वत की ओर जाती हैं। यदि यह रेखा जीवन-रेखा के पीछे से शुरू हो तो भौतिक सफलता की सूचक होती हैं। जो सफलता किसी सम्बन्धी के कारण सम्भव हैं, चन्द्रमा के पर्वत से शुरू हो तो आजीविका में किसी महिला की सहायता मिलती हैं। अथवा दूसरों को प्रसन्न करके अपना व्यवसाय करता हैं। यदि वह