Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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हस्त रेखा ज्ञान
यद्यपि काम और व्यायाम हाथ को बड़ा तथा चौड़ा बना देते है । तथापि उसकी किस्म कभी भी नहीं बदलती, लेकिन जिसने इस विद्या को पढ़ा है, वह शीघ्र ही उसको पहचान लेता है।
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ऐसा हाथ वास्तव में कर्मकार दिखाई पड़ता है। यह लगभग सीधा ही होता है अथवा कलाई उंगलियों की जड़ों और बराबर (Sido) में एकसा होता है। अंगुलियाँ भी देखने में 'वर्गाकार छाँट' रखती है। अंगूठा सदा लगभग लम्बा, अच्छी शक्ल का और हथेली में ऊँचे को होता है।
चौकोर हाथ अभ्यासी या कार्यशील हाथ भी कहलाता है। ऐसे मनुष्य विशेषकर अभ्यासी, तर्क पटु और पार्थिव होते हैं। वे पृथ्वी तथा पृथ्वी की वस्तुओं में रहते हैं। वे बहुत कम आदर्श तथा विचार रखते हैं, वे ठोस गम्भीर कार्य करने वाले तथा जो कुछ भी वे करते हैं उसे विधिपूर्वक, तथा परिश्रम करते हैं, बेसबूत अपना अपने कारणों से विश्वास करते हैं। वे और किसी वस्तु की अपेक्षा अपनी आदतों से अक्सर धार्मिक और अन्धविश्वासी होते है ।
हाथों की निम्नलिखित किस्में होती हैं---
1. साधारण या निम्न श्रेणी का ( Clementry) 2. कार्यशील या चौकोर ((Ise bulor squarl)