Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
८९७
हस्त-रेखा ज्ञान
लेपनी के समान हाथ दार्शनिक हाथ । आजकल दार्शनिक हाथ बहुत कम पाया जाता है। आजकल हथेली चौकोर तथा केवल अगुलियों ही दार्शनिक होती है। ऐसी दशा में अभ्यास ही नींव होती है जिस पर कि विद्याभासी दिमाग अपनी कल्पना, अपना धर्म, साहित्य के कार्य या विज्ञान की खोज करता है। ऐसे हाथों में मस्तक-रेखा कुछ झुकी हुई होती है। लेकिन वह सीधी भी पाई जाती है। और जब वह चपटे दिमाग का हो तो स्वभाव विद्याभासी प्रकृति हो अभ्यासी कार्यों के काम में लाता है। लेकिन साधारण तौर पर ऐसे मनुष्य चौकोर हाथ वाले मनुष्यों से कम धर्म रखते है।
गांठदार या जोड़दार अंगुलियां लाभ और पढ़ाई में विस्तार तथा हिफाजत बतलाती है। वे दिमाग से कार्य को पकड़ लेते है। और फिर सोचने के लिए समय लेते है। दार्शनिक हाथ मानव जाति की मानसिक दशा की बहुत उत्तम दशा का द्योतक है।
शनि की अंगूठी (Ring of Stern) शनि की अंगूठी बहुत कम पाई जाती है (2 चित्र 20) और यह बहुत ही अच्छा निशाना नहीं है। यह भी अर्द्धवृत्ताकार रेखा है, लेकिन शनि के उभार के चारों ओर होती है। ___मैंने अपने अनुभव में कभी भी किसी मनुष्य को जो यह अंगूठी रखता है। किसी भी कार्य में सफल होते नहीं देखा। ऐसे मनुष्य किसी विशेष या अजीब रास्ते में अपने साथियों से अलग हो जाते है। वे अकेल होते है और वे अपनी अकेली स्थिति को गौर से पहचानते है। वे अन्धकारपूर्ण, चिन्ताशील तथा शनि की प्रकृति के होते है। वे बहुत कम शादी करते है, और जब वे करते है, तो बुरी प्रकार से असफल होते है।
वे अपने कार्यों में बहुत दृढ़ होते है। अपने कार्यों में तनिक सी किसी की भी राय या दखल को नहीं मानते। उनका जीवन दुःखी दरिद्र या किसी प्रकार का पापपूर्ण दुःखान्त या घातक होता है। यह निशान रखना बहुत ही अभाग्यशाली