Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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हस्त रेखा ज्ञान
विज्ञान का ज्ञात टहनी पत्ती आदि से पूरा पौधा उत्पन्न कर सकता हैं जब उसका बीज अप्राप्य हो उसी प्रकार व्यक्ति को उसके हाथ की रेखाओं से जाना जा सकता हैं, हाथ मानव शरीर का महत्त्वपूर्ण अंग हैं। इसे हम जीवन दर्पण या मानचित्र कह सकते हैं।
(1) जीवन रेखा - अगर रेखा मोटी जंजीर की तरह हो तो अस्वस्थता को बताती हैं रेखा साफ होनी चाहिए कटी, चौड़ी तथा पीले रंग की नहीं होनी चाहिए | यह रेखा बृहस्पति के उभार से आरम्भ होकर हाथ की कलाई की तरफ आती हैं। और शुक्र के उभार को घेर लेती है, किसी व्यक्ति की आयु मालूम करने के लिये इस रेखा के अतिरिक्त और भी कई बातों का ध्यान रखना होता हैं। यह रेखा व्यक्ति की शारीरिक बनावट उसकी ओजस्विता एवं स्वस्थ शक्ति का प्रतीक हैं। (जो रेखा हाथ में शुक्र के उभार तक जाती हैं एवं वह जीवन रेखा में मिल जाए और दोनों रेखायें बराबर हों तो मृत्यु की प्रतीक हैं, शनि के उभार से निकलती हुई गहरी होती रेखाएँ जो जीवन रेखा को छूती हैं वह अस्वस्था प्रकट करती हैं, यदि रेखा छोटे-छोटे टुकड़ों में बनी हो या चैन की तरह हो तो भी अस्वस्थता की ओर संकेत करती हैं। यदि इसके साथ एक क्रास भी हो तो ऑपरेशन होता हैं। यदि दोनों हाथों में जीवन रेखा बिल्कुल टूटी हुई हों तो उस आयु में मृत्यु की सम्भावना होती हैं यदि एक हाथ में टूटी हुई हो तो खतरा हो सकता हैं। यदि वृहस्पति के पर्वत से शुरू हो तो बचपन से महत्त्वाकांक्षी होने की प्रतीक हैं, यह मस्तिष्क रेखा से जुड़ी हो तो वह व्यक्ति के साहसी और आत्मविश्वासी होने का प्रतीक हैं। छोटी-छोटी बारीक रेखायें जो जीवन रेखा के नीचे की ओर आयें तो शक्ति की कमी प्रकट करती हैं यदि द्वीप हो तो अस्वस्थता की प्रतीक हैं।
(2) मस्तिष्क रेखा - यह रेखा व्यक्ति के बौद्धिक विकास व मस्तिष्क की बीमारियों से सम्बन्धित होती हैं। यदि यह रेखा बृहस्पति के पर्वत से निकलती हुई जीवन रेखा को छुए तो मानसिक शक्ति महत्त्वाकांक्षा और नेतृत्व के गुणों को दर्शाती हैं। अगर यह रेखा जीवन रेखा से अलग हो तो व्यक्ति के उद्देश्य की कमी हो जाती हैं। यदि दोनों के बीच में जगह अधिक हो तो व्यक्ति की