Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
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और निरोगता बढ़ती है, जिन्दु सियों के गर्ग नाश और जजों का नाश अवश्य कराती है।। १५७॥
वाउम्मासिय वरिसं कालेकालेय परिसये देवो।
जइणेरड़इदिसाये विज्जल वंतीय दीसिज्ज ॥१५८॥ (जइणेरइइदिसायेविज्जल) यदि नैर्ऋत्य दिशा में बिजली (वंतीयदीसिज्ज) चमके तो (वाउम्मासिय वरिसं) हवा बहुत चलती है (कालेकालेय वरिसयेदेवो) और समय-समय में पानी की भी वर्षा होती है।
भावार्थ- यदि नैर्ऋत्य दिशा में बिजली चमके तो हवा बहुत चलती है और समय-समय पर पानी की भी वर्षा होती है।। १५८ ।।
अह वायव्वदिसाए वायदिवादं विणासए वरिसं।
चोरा हुँतिय बहुया देशविणासं कुणइ राया॥१५९॥ (अहवायचदिसाए वायदिवादं) यदि वायच कोण से बिजली चमके एवं (वरिसंविणासए) हवा अधिक चले और वर्षा कम हो तो (चोराहुतिय बहुया) चोर बहुत होते हैं (देशविणासं कुणइराया) राजा और देश का भी नाश होता है।
भावार्थ-यदि वायव्य कोण में बिजली चमके एवं हवा अधिक चले और वर्षा कम हो तो बहुत चोरों की उत्पत्ति होती है, राजा और देश का विनाश होता है।।१५९॥
अहवारूणीय दिवाबहुबरिसइ कुणइ खेमसुभिक्खं।
वायव्वेरोय भयं विप्पाणं भयं करो बिज्जू॥१६०॥ (अह वारूणीयदिठ्ठा) यदि वरुण दिशा में बिजली चमकती हुई दिखे तो (बहु बरिसइ खेमसुभिक्खं कुणइ) बहुत वर्षा होगी व क्षेम और सुभिक्ष करेगा, (वायव्वेरोय भयं बिज्जू) वायव्य दिशा में बिजली चमके तो समझो रोग का भय होगा, (विप्पाणं भयं करो) और ब्राह्मणों को भय होगा।
भावार्थ-यदि वरुण दिशा में बिजली चमके तो बहुत वर्षा होती है, और क्षेम सुभिक्ष कारक होता है, एवं वायव्य दिशा में चमके तो ब्राह्मणों को भय करती है॥१६०॥