Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता |
८७°
पत्थर गिरे तो घोर वर्षा होगी ऐसा कहना चाहिये, (जइ णिवडंति रसानां) यदि रसों की वर्षा (वभूद वरिसागमा भणिया) हो तो वर्षा आगमन होगा।
भावार्थ-शंख और सुक्ती के समान यदि पत्थर गिरे तो घोर वर्षा कहना चाहिये, रसों की वर्षा हो तो समझो वर्षा का शीघ्र आगमन होगा ।। १५१।।
मंडुक कुम्भसरिसा गजदंत समान रूवसे कासा।
जड़ दीसंतपडता देसविणासं तु णायव्वं ॥१५२ ।। (मंडुक्क कुम्भसरिसा) मेढ़क, कुम्भ, (गतदंतसमान रूवे कासा) हाथी दांत के समान (जइदीसंपडता) यदि पत्थर गिरे तो (देसविणासं तुणायव्वं) समझो देश का विनाश होगा।
भावार्थ-मेढ़क, कुम्भ, हाथी दांत के समान पत्थर गिरे तो समझो देश का नाश अवश्य होगा। १५२ ।।
करिकुंभछत्तसरिसा थाली वज्जोयमा जड़पडंति।
कुव्वंति देसणासं रायाणं सव्वाविणासंति॥१५३॥ (करिकुंभछत्तसरिसा) हाथी के गंडस्थल, छत्र के समान (थाली वज्जोयमाजइ पडंति) थाली व वज्र के समान यदि पत्थर गिरे तो (देसणासंकुवंति) देश का विनाश कहते हैं (रायाणं सव्वाविणासंति) और सब प्रकार से राजा का भी नाश होगा।
भावार्थ—यदि हाथी के गंडस्थल के बराबर या छत्र के समान, थाली व वज्र के समान पत्थर गिरे तो देश का नाश अवश्य होगा व राजा की मृत्यु होगी।। १५३ ।।
बिजली का लक्षण इंदम्मिदिसाभाए जइविज्जू संपया सए जत्थ।
वाउम्मसिय वरिसं तत्थयहोहिंतणायव्वं ॥१५४॥ (इंदम्मिदिशा भाए जइ) यदि उत्तर दिशा की ओर (विज्जूसंपया सए जत्थ) बिजली चमके तो (वाउम्मासिय वरिसं) वायु चलकर वर्षा (तत्थयहोहिंतणायव्व) अवश्य होगी ऐसा जानना चाहिये।