Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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निमित्त शास्त्रम्:
(उप्पलयाणपडणं) पत्थरों का पड़ना (उप्पायणिमित्त कारणं छाणं) आदि के निमित्त और उपाय (जइ उपलयापडंता) कितने ही प्रकार के होते हैं (बहुविहरूवेहिसव्वत्थ) और कितने ही प्रकार का फल होता है।
भावार्थ-आचार्य कहते है पत्थरों का पड़ना भी कई प्रकार का होता है और पत्थर भी कई तरह के होते हैं, इसलिये उन निमित्तों को भी अलग-अलग कहा है।। १४८॥
मालासरच्छ सरिसलालूरी फल समाण रूवाव।
जय णिवदंतिय करया तत्थ सुभिक्खंतिणायव्वं ॥१४९ ॥ (मालासरिच्छ सरिसं) माला के दाने के समान वा (खजूरीफल समाण रूवाव) खजूर के बराबर (जयणिवडंतिय करया) यदि पत्थर पड़ते हैं, तो (तत्थसुभिक्खंतिणायव्व) वहाँ पर सुभिक्ष होगा, ऐसा जानना चाहिये। ___भावार्थ-यदि पत्थर माला के दाने बराबर या खजूर के बराबर पड़े तो समझो सुभिक्ष होगा। १४९ ॥
वाधिफल सरिसा वा मंजूसावार सरिसरूवाव।
जयणिवडंतिय कर या तत्थसुभिक्खंति णायव्वं ॥१५०॥ (वाधिफलसरिसा वा) बेर के फल के समान वा (मंजूसावारसरिस रूवाव) मूंग या तुवर के दाने के समान (जयणिवडंतिय कर या) जहाँ पत्थर गिरते हैं (तत्थ सुभिक्खंतिणायव्वं) तो वहाँ पर सुभिक्ष अवश्य होगा।
भावार्थ-यदि बेर के फल के समान व मूंग के समान या तुवर के समान पत्थर गिरें तो समझो सुभिक्ष होगा ।। १५०॥
संवुक्कसुत्तिसरिसा घोरं वारिसंकरंणिवेइत्ति।
जइणिवडंति रसानां वभूद वरिसागमा भणिया॥१५१॥ (संवुक्कसुत्तिसरिसा) शंख और शुक्ती के समान (घोरं वरिसका णिवेइत्ति)