Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
भद्रबाहु संहिता ,
८४
(जत्थेणजत्थकेऊ) जिस दिशा में केतु दिखे (तंदिसणिसासयाहोई) उसी दिशा का नाश करता है (केउस्स सुहानिपुणों) यह धूमकेतु अशुभ फल ही देता है (सयमिकं होइअसुहरूवेण) और नाश कर देता है।
भावार्थ-लिस दिशा का धूमकेतु हो उसी दिशा में यह अशुभ फल देता है, नाश का कारण होता है॥१७७।।
अहपश्चिमेण भागेणउदिह्रो पुख्वदो विणासेई।
पुज्वेणपच्छिमेणय इणुविचरीय चारेणं॥१७८ ।। (अहपश्चिमेणभागे) यदि पश्चिम भाग में (णउदिछोपुव्वदोविणासेई) केतु का उदय होतोपूर्व में नाश करता है (पुव्वेणपच्छिमेणय) पूर्व में दिखे तो (इणुविचरीयचारेणं) पश्चिम दिशा का नाश करता है।
भावार्थ-यदि पश्चिम दिशा में धूमकेतु का उदय हो तो पूर्व भाग का नाश करता है, और पूर्व भाग में इसका उदय हो तो पश्चिम भाग का नाश करता है।। १७८॥
जइपुच्छं तत्थभयं जत्थसिरो तत्थणिब्भऊ होई। सिरपुच्छमज्झएसेपमुदीदोणस्थि
संदेहो।। १७९॥ (जइपुच्छं तत्थभयं) इसकी जहाँ पूँछ हो वहाँ भय होता है (जत्थसिरोतत्थणिब्भऊ होई) जहाँ सिर होता है, वहाँ पर संग्राम करता है, (सिरपुच्छ- मज्झएसे) जहाँ इसका मध्य भाग हो (पमुदीदोणतित्थसंदेहो) वहाँ आनन्द कारक होता है।
भावार्थ-जहाँ धूमकेतु की पूँछ हो वहाँ भय, जहाँ सिर हो वहाँ संग्राम, जहाँ मध्य हो वहाँ आनन्द होता है।। १७९ ।।
जइसुरगुरूणा सहिओ दीसइ केऊण हम्मिउग्गामिदौ ।
अक्खड़ विप्पविणासदि मास चउत्थेणसंदेहो॥१८०॥ (जइ सुरगुरूणा सहिओ) यदि गुरू के साथ (केऊण हम्मिउग्गमिदौदीसइ) केतु का उदय दिखे तो (अक्खइविप्पविणासदि) विप्रों का नाश (मासचउत्थेणसंदेहो) चार महीने में हो जायगा, इसमें सन्देह नहीं है।