Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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निमित्त शास्त्रम्:
भावार्थ-जो उल्का आकाश में पड़ती हुई दिखे तो सुवर्ण का नाश करती है, और अंगारे के समान गिरती हुई दिखे तो अग्नि दाह करती है॥१२२॥
आहसुक्केणयजुत्ता जम्हाजइपडइ कहव पलजंती।
तोरणमंडविणासं कच्छुकण्डुच्च साणिवेएई ।। १२३ ।। (अहसुक्केणयजुत्ता जुम्हाजइ) यदि शुक्रोदय में उल्का (पडइ कहव पलजंती) पड़ती हुई दिखाई दे तो (तोरणमंडविणासं) तोरण, मण्डप आदि का विनाश होगा, (कच्छु कण्डुच्चसाणिवेएई) और खुजली आदि का रोग उत्पन्न होगा।
भावार्थ-यदि शुक्रोदय में उल्का पड़ती हुई दिखाई दे तो तोरण मण्डप आदि का विनाश होगा, खुजली आदि का रोग होगा ।। १२३ ॥
.............। राहूण विसय धादं जलणासयरहिवे उक्का॥१२४॥ (राहूणविय धादं) राहू के उदय में यदि उल्का दिखे तो (जलणासयराहिवे उच्चा) वह उल्का जल का नाश करेगी।
भावार्थ-यदि राहू के उदय में उल्का दिखे तो वह उल्का जल का नाश करती है।।१२४॥
परकम्मि जस्सपडिया तस्सघोरा हवेइ पुण्णाणी।
इदंदिसए सुपडिया खेम सुभिक्खंणिवेदेहि ।।१२५॥ (परकम्मि जस्सपडिया) पश्चिम दिशा की उल्का (तस्स घोरा हवेइ पुण्णाणी) उस दिशा में घोर पीड़ा करती है (इदंदिसए सुपडिया) और उत्तर दिशा की उल्का (खेमुभिक्खंणिवेदेहि) क्षेमकुशल और सुभिक्ष करती है, ऐसा निवेदन करना चाहिये।
भावार्थ-पश्चिम दिशा की उल्का घोर पीड़ा उत्पन्न करती है, उत्तर दिशा में यदि उल्का दिखाई पड़े तो क्षेम, कुशल, सुभिक्ष का कारण होती है॥ १२५॥
अग्गेई अग्निभयं जम्माए एण सोसयं जणणी। अहणरइये पड़िया दव्वविणासं णिवेदेहि ।।१२६॥