Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
(अग्गेई अग्गिभयं) अग्नि कोण में उल्का गिरे तो अग्नि भय उत्पन्न करती है ( जम्माएणसोसयं जणणी) दक्षिण में उल्का पड़ती हुई दिखे तो सन्ताप उत्पन्न करती है (अहणरइये पडिया) नैर्ऋत्य कोण में दिखे तो ( दव्वविणासंणिवेदेहि) द्रव्य का नाश करती है।
भावार्थ यदि अग्नि कोण में उल्का गिरे तो अग्नि भय उत्पन्न करती है, दक्षिण में गिरे तो सन्ताप उत्पन्न करती है, नैर्ऋत्य कोण में दिखे तो द्रव्य का नाश करती है ॥ १२६ ॥
अहवारूणीय पडिया वरिसं वायं च बहूणिवेएई । वायव्वे शेयभयं
सोभापुसो
तयाहोई ।। १२७ ॥
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( अहवारूणीयपडिया) यदि वरुण दिशा की उल्का दिखे तो ( वरिसं वायं च बहूणिवेएई) वायु के साथ बहुत वर्षा होती है ( वायव्वेरोय भयं ) वायव्वदिशा की उल्का रोग भय करती है (सोभापुणसो तयाहोई) किन्तु इस दिशा की उल्का शुभ भी होती है।
भावार्थ — यदि वरुण दिशा की उल्का दिखे तो वायु के साथ बहुत वर्षा होती है। वायव्यदिशा की उल्का रोग भय उत्पन्न करती है, किन्तु शुभ भी होती है ॥ १२७ ॥
ईसाणाए पडिया घादंगब्भस्स कुणइ महिलाणं । दित्तदिसासुयपडिया भय जणणी दारूणीउक्का ॥ १२८ ॥
(ईसाणाए पडिया) ईशान कोण में दिखने वाली उल्का (महिलाणं गब्भस्सघादं कुणइ ) महिलाओं के गर्भ का नाश करती है ( दित्तदिसासुयपडिया) पूर्व में दिखे तो ( उक्का) उल्का ( भयजणणी दारूणी) भय को उत्पन्न करती है।
भावार्थ — ईशान कोण में दिखने वाली उल्का महिलाओं के गर्भ का नाश करती है, पूर्व में दिखे तो उल्का भयंकर भय को उत्पन्न करती है ॥ १२८ ॥
सूरम्मि तावयंती पुहवी तावेइणिवणियाणुक्का । सोमेपुण सोममुह खेमसुभिक्खकरीउक्का ॥ १२९ ॥ ( सूरम्मि तावयंतीपुहवी ) रविवार को दिखने वाली (तावेइणिवणियाणुक्का)