Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
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हुआ (लभऊ बलययाणमई) चौड़ा होता हुआ दिखे (तो) तो (जाणई) जानो कि (बलसोहं रजन्भसंचरणस्स) वहाँ पर राज्य भय अवश्य होगा।
भावार्थ-यदि इन्द्र धनुष लम्बा, चौड़ा होता हुआ आकाश में उठते समय दिखाई पड़े तो, समझो वहाँ पर राज्य भय अवश्य होगा ।। १०६।।
इंदोकिलविणासं मंत्तिविरूद्धो दुपरियणे होई।
उठ्ते पुणपडइयणर वइपडणं णिवेदेई॥१०७॥ (इंदोविलाविणासंघव मामिला होनाशिक गड़े तो (मंत्तिविरूद्धोदुपरियणे होई) मन्त्री और राजा में विरोध हो जाता है (उठ्तेपुणपडइ) उठकर पुन: गिर पड़े (णरवइपडणं णिवेदेई) तो राजा का राज्य भंग होगा।
भावार्थ-यदि इन्द्र धनुष खड़ा होकर गिर पड़े तो मन्त्री और राजा में वैमनस्य होता है। इन्द्र धनुष उठता हुआ गिर पड़े तो समझो राजा का राज्य भंग
होगा॥१०७॥
भंगेणरवइ भंग फुणियेण रोयपाडिऊं होई।
पावग्गहस्स नुगहिए उठ्तो कुणइ संगामं॥१०८॥ यदि इन्द्र धनुष (भंगेणरवइ भंग) भंग होता हुआ दिखे तो राजा की मृत्यु होगी, (फुणियेणरोयपाडिऊ होइ) बिखरता दिखे तो रोग फैलेगा, (पावणहस्सनुगहिएउठ्तो) उठती हुई में अग्नि निकलती दिखे तो (संगामं कुणइ) युद्ध करावेगा।
भावार्थ-इन्द्र धनुष यदि टूटता हुआ दिखे तो राजा की मृत्यु होगी, बिखरता हुआ दिखे तो रोग फैलेगा, अग्नि निकलती हुई दिखे तो युद्ध करायेगा ।। १०८।।
जइमुचइ धूमं वा अग्निजालं चणुष्ट्रिओ संतो।।
तो कुणइ राइमरणं देशविणासंपुणोपच्छा ॥१०९॥ यदि इन्द्र धनुष (जइमुंचइ धूमं वा अग्निजालं) धूम वा अग्नि जाल निकाले एवं (चणुठ्ठिओ संतो) उठता हुआ दिखे तो (तो कुणइ राइमरणं) राजा का मरण करता है (देशविणासंपुणोपच्छा) और देश का विनाश करता है।