Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
नाश होता है इस प्रकार जो कुछ भी कहा है उन सबका फल अशुभ ही होता है ॥ ८६ ॥
जड़ सिवलिंगं फुट्ठइ अग्गी जालवमुङफुलिंगं । वसतिल्लरूहिरव्या होहइ जो जाण उप्पायं ॥ ८७ ॥
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( जइसिवलिंगंफुट्ट ) यदि शिवलिंग की प्रतिभा फूटे और ( अग्गीजालवमुफुलिंग) उसमें से अग्नि की ज्वाला उठती हुई दिखे ( वसतिल्लरूहिरव्वाहोहइ ) वा रुधिर की धारा निकलते हुए दिखे तो ( जो जाण उप्पायं ) उसके उपाय को मैं कहता हूँ ।
भावार्थ — यदि शिवलिंग फूट जाय और उसमें से अग्नि की ज्वाला वा रक्त की धारा निकलते हुऐ दिखे तो उसके फल को मैं कहूँगा ॥ ८७ ॥
फुडिएणयंति भेऊ अग्गी जालेण देशणासोय |
वसतिल्ल रूहिर धारा कुणति सेयं ण खदस्स ॥ ८८ ॥
(फुडिएणयंति भेऊ ) अगर शिवलिंग के फूटने से (अग्णी) अग्नि ( जालेणदेशणासोय) की ज्वाला दिखे तो देश का नाश होगा ( वसतिल्लरूहिर धारा ) रुधिर की धारा निकले तो (कुणंतिसेयं णखंदस्स) घर-घर में रोना पड़ेगा ।
भावार्थ — यदि शिवलिंग के फूटने पर अग्नि की ज्वाला निकलती हुई दिखाई दे तो देश का नाश होगा, और खून की धारा निकलती हुई दिखे तो घर-घर में रोना पड़ेगा ॥ ८८ ॥
मासेति
तीइयेहि रूवं दंसंति अपण्णासवे ।
जइण विकीरह पूया देवाणं भक्ती ए एणं ॥ ८९ ॥
(रूवं दंसंति अप्पणासवे ) इस प्रकार के सब उत्पात दिखने पर (मासेहितीइयेहि ) तीन महीने के अन्दर ( जइणविकीरहपूया) पूजा करनी चाहिये एवं (देवाणभक्ति ए ए) देवों की भक्ति करनी चाहिए।
भावार्थ — इस प्रकार के सब उत्पात दिखने पर आचार्य कहते हैं कि तीन महीने में उसकी शान्ति के लिये जिनेन्द्र की पूजा करे ॥ ८९ ॥
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