Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
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एकद्देसे चलिए यव्वपयाणे वीयाण पीढ़े।
णयरस्स हवइ पीडा णच्चंतो सइयमासेण॥७५॥ (एकद्देसे चलिए रवपया), शदि प्रतिगामी अपने स्थान से चलायमान (वीयाणपीठेइ) हो तो (णयरस्स हवइ पीडा) नगर को पीड़ा (णच्चंतो तइयमासेण) तीन महीने में होगी।
भावार्थ-अगर प्रतिमा स्व स्थान से अपने आप चलने लगे तो समझो तीसरे महीने में प्रजा के लोगों को पीड़ा होगी।७५।।
गरवइपहाण मरणं सत्तममासेण हवइ सिर भंगे।
चउवण्णस्सपुणो जणवइपीडा हवइ घोरा॥७६ ।। (सिर भंगे) यदि प्रतिमाजी का सिर भंग हो जाय तो समझो (सत्तममासेण) सातवें महीने में (णरवइपहाणमरणं हवइ) राजा के प्रधानमन्त्री की मृत्यु होगी भुजा के टूटने से (चउवण्णस्सपुणो जणवइ) चारों वर्गों के लोगों को (घोराहवइपीडा) भयंकर पीड़ा होगी।
भावार्थ-यदि प्रतिमा जी का सिर भंग हो जाय तो सातवें महीने में राजा के प्रधानमन्त्री का मरण होगा, भुजा के टूटने पर चारों वर्गों के लोगों को पीड़ा होगी॥७६॥
पडिमा विणिगामेण य रायामरणं च चोरअग्नि भयं ।
जायद तइएमासे पडिए पुणलक्खइपडणं॥७७॥ (पडिमा विणिगामेणयपडिए) यदि प्रतिमा जी सिंहासन से अपने आप गिर पड़े तो (तइएमासे) तीसरे महीने में (रायामरणं च चोरअग्नि भयं जायइ) राजा का मरण होगा चोर व अग्नि का भय उत्पन्न होगा।
भावार्थ-यदि प्रतिमा सिंहासन से स्वतः ही गिर पड़े तो समझो तीसरे महीने में राजा का मरण होगा, और चोर अग्नि का भय उत्पन्न होगा ।। ७७॥
जइपुण ए एसव्वे पक्खभसरेण उप्पाया। जायंति तया खिप्पं दुब्भिक्ख मयं णिवेदंति॥७८।।