Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
निमित्त शास्त्रम्:
(जइ) यदि (पुण) पुनः (ए ए सब्वे) ये सब (उप्पाया) उत्पात (पक्खन्भसरेण) पक्ष भर चलते रहे (तया तो (खिप्पंदभिक्ख भयं जायंति) दुर्भिक्ष का भय उत्पन्न होगा (णिवेदंति) ऐसा निवेदन करना चाहिये।
भावार्थ-यदि पुन: ये सब उत्पात पन्द्रह दिन तक लगातार चलते रहे तो दुर्भिक्ष नियम से होगा ऐसा निवेदन करे॥७८॥
देवाणच्चंतिजिहंपस्सिजतीय तहय रोवंति।
जयधूमंति चलतिय हसति वा विविह रूवेहि।। ७९॥ (देवाणंच्चंति) देव प्रतिमा यदि नाचने लगे (जिहंपस्सिन्जंतीय) जिह्वा निकाले, पसीना छोड़े (तहय रोवंति) और उसी प्रकार रोने लगे (जय घूमंति चलंतिय) प्रतिमा घूमने लगे चलने लगे (वा विविहरूवेहि हंसति) या हैंसती हो अथवा विविध रूप धारण करती हो तो।
भावार्थ-यदि प्रतिमा नाचती है, जिह्वा निकालती है, पसीना छोड़ती है एवं उसी प्रकार रोती है, घूमती, है, चलती है, हँसती है, अथवा विविध रूप धारण करती हो तो।। ७९॥
लोयस्सदिति मारी दुभिक्खं तहयराय पीडं च।
चित्तं तीहा पावं पुरस्स तहणयररायस्स॥८॥ (लोहस्सदिति) उपर्युक्त निमित्त उत्पात हो तो (मारी दुभिक्खंत हय) मारी रोग, दुर्भिक्ष उसी प्रकार (रायपीडं च) राजा को पीड़ा आदि होती है, (चित्तं तीहापावं पुरस्स) और तीन महीने के अन्दर दुष्काल नगर (तहणयररायस्स) के राजा को कष्ट होगा।
भावार्थ-उपर्युक्त निमित्त रूप उत्पात हो तो मारी, दुर्भिक्ष उसी प्रकार राजा को पीड़ा और तीन महीने में दुष्काल पड़ जाता है।। ८० ।।
रूइयेण राइमरणं हसियेन पदेसविभमोहोई।
चलियेण कंपिएणय संगामो तत्थणायव्यो।। ८१॥ (यदि रूइयेण) प्रतिमा के रोने पर राजा का मरण होगा (हसियेनपदेस विभमोहोई)
----
-
-