Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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निमित्त शास्त्रमः
गामे वाणयरे वाजरिसइ बहुविहाय वरिसाइ।
वसमंसपूय वरिसं तिल्लं सप्पे चणुहिरं बा॥६५॥ (गामे वाणयरे वाजइ) जिस प्रकार ग्राम या नगर में (दिसइ बहुबिहाय वरिसाइ) बहुत प्रकार से जल वर्षा होती है उसी प्रकार (वसमंसपूय बरिसं) चर्बी, मांस, पीप आदि व (तिल्लं सप्पे चणुहिरं वा) तिल्ल, घी आदि की वर्षा होती है।
भावार्थ-जैसे उत्पात कारक गाँव या नगर में जल वर्षा होती है, उसी प्रकार मांस, चर्बी, पीप, तेल, घी आदि की वर्षा होती है॥६५॥
मारी हाट्ठीघोरा जत्थेहे एहाति वरिसउप्पाया।
तद्देससे वज्जि जहाकालपमाणं वियाणित्ता॥६६॥ (जत्थे हे एहाति वरिस उप्पाया) जिस देश में उपर्युक्त उत्पात कारक वर्षा हो तो वहाँ पर (मार हाही घोरा) मारी रोगादि भयंकर रूप धारण कर होते हैं इसलिये (तद्देसे वज्जिजहा) उस देश को त्याग कर देवे वह भी (कालपमाणवियाणित्ता) कुछ काल प्रमाण छोड़े।
भावार्थ-जिस देश में उपर्युक्त उत्पात कारक मांसादिक की वर्षा हो तो उस देश का कुछ काल प्रमाण त्याग कर देवे, नहीं तो मारी रोगादिसे मारा जायगा॥६६॥
मासेऊ मासेणं दो मासे सोणियस्स णायव्वो।
विट्ठाए छम्सां विय तिल्लेसत्तरत्तेण॥६७॥ (मासेऊमासेणं) मांस की वषा हो तो एक महीने में (सोणियस्स दो मासेऊणायव्वो) और रक्त की वर्षा हो तो छह महीने में (विय तिल्लेसत्तरत्तेण) घी, तेलादिक की वर्षा हो तो सात दिन में वह फल देगी।
भावार्थ-मांस की वर्षा हो तो एक महीने में, रक्त की वर्षा हो तो दो महीने में, विष्टा की वर्षा हो तो छह महीने में, और घी, तेल की वर्षा हो तो सात दिन में फल देगी।।६७॥
परचक्का भवो घोरो मारी वा तत्थ होइ देसम्मि। णयरस्सविणासो वा देशविणासो यणियमेण॥६८॥