Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु सहिता
८३४
कर (
अबलं वियसीधरो रूवे यसछलक्खणो चंदो। णावाइ कुणइ वरिसं सुभिक्खदेइ हलसरिसो॥ ३५॥ लंवियसीसधरोरूवे) अच्छा स्वच्छ, रूपवान् (यसछल क्खणो चंदो) चन्द्रमा (णावाइ कुणइ वरिसं) वर्षा करता है (हलसरिसो सुभिक्खदेइ) मान सुभिक्ष करता है। ---शुभ और स्वच्छ चन्द्रमा अच्छी वर्षा करता है, और हल के ने तो सुभिक्ष करता है।। ३५।। होगं दक्खिन वो जुगसंपत्ति जुगस्सयाणो य। म्म दंडसरिसोधणु सरिसो ससहरोजुस्स ।। ३६ ॥ भरोग) यदि दक्षिण भंग की तरफ चन्द्रमा ऊँचा हो तो आरोग्य (जुगसंपत्ति जुगस्सयाणो य) समान किनारी वाला चन्द्रमा सम्पत्ति रिसो ससहरोजुस्स) धनुष के आकार का चन्द्रमा सम होता
चरणोगिन
समझो उस
यदि विदीसइणच्च
भावार्थ समझो, नगर कार
दे चन्द्रमा शृंग दक्षिण की तरफ ऊंचा हो तो निरोगता बढ़ाता वैभव बढ़ाता है, डण्डे के आकार हो तो दण्ड दिलाता है, -तो सम होता है।। ३६॥ गो समवण्णं भयं च पीई तहाणिवेदेहि। मायासो कुणइ भयं सव्वदेसेसु॥३७॥ गं) समान चन्द्रमा समवर्ण का हो तो (भयं च पीड़ डा करता है (लक्खारसपायासो) और लाक्षा रस के समान इ) सर्व देशों में भय उत्पन्न करता है। ग वाला चन्द्रमा हो तो भय और पीड़ा करता है और पूर्ण देशों में भय उत्पन्न करता है।। ३७॥ भयं वाहिरण्णो तहाणिवेदेई।
धूसरवण्णोय वयसानं ॥ ३८॥
तो । (णाणाम (जइपडेदि भूमीए)। में मारी रोग और भयो
भावार्थमा गाँव में मारी रोग उत्पन्न
णयरस्सरच
होईणयर (णयरस्सरच्छमन्यौ कुत्ते ऊंचे मुंह करके से
(परचक्काऊणसंदेहो।