Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
८३७
निमित्त शास्त्रम्
.
भावार्थ- यदि आकाश में बहुत मनुष्यों का शब्द तो सुनाई पड़े किन्तु मनुष्य दिखे नहीं कोई तो पाँचवें महीने में मारी रोग उत्पन्न होगा, इसमें कोई सन्देह नहीं है। ४४॥
अहबहुसतिधावंति सवदो जुज्जनुपवदंति।
रोवा राव कुणंता भूया लोहस्सणासाय॥४५॥ (अहबहुसतिधावंति) जहाँ पर बहुत लोग दौड़ते हो अथवा (सवदोजुज्जनुपवदंति) सभी परस्पर में लड़ते हुए या (रोब राव कुणंता) रोते हुए सुनाई पड़े तो (भूया लोयस्सणासाय) वहाँ पर अवश्य ही नाश होगा।
भावार्थ-जहां पर मनुष्यों का अभाव होने पर भी लड़ने के शब्द सुनाई पड़े तो समझो वहाँ अवश्य ही नाश होगा॥४५॥
संझावेलासमये रवयं सिवा चउदशगामपासेसु।
कइदिग्गामुपाद रस्थिविणासं संदेहो॥४६॥ (संझावेलासमये स्वयं सिवा) सायंकाल में शुगाल के रोने के शब्द (चउदशगामपासेसु) गाँव के चारों तरफ सुनाई पड़े (कइदिग्गामुपाद) और रात्रि में यह सुनाई पड़े तो (रस्थिविणासंणसंदेहो) राजा का मरण अवश्य होगा।
भावार्थ-यदि सांयकाल में शृगाल गाँव के चारों तरफ रोवे तो समझो उस नगर के राजा का मरण होने वाला है।। ४६॥
मज्झण्णेपरचकं संझाए कुणइ रोगवाहि भयं।
ससेसुसिवाकाले रोवंति सोहना रत्ती॥४७॥ (मभज्झण्णेपरचक्रं) मध्य रात्रि में शृगाल रोवे तो समझो परचक्र का भय अवश्य होगा, (संझाए कुणइ रोग वाहि भयं) सायंकाल रोवे तो रोग, भय उत्पन्न होगा (सेसेसु सिवाकाले) बाकी समय में भृगाल (रोवंति) रोता है तो (सोहनारत्ती) कुछ नहीं होता है।
___भावार्थ-यदि शृगाल मध्य रात्रि में रोवे तो परचक्र का भय होगा, सांयकाल में रोवे तो भय उत्पन्न होगा, बाकी बचे समय में रोवे तो उसका कुछ भी फल नहीं होता है॥४७॥
-..
..
-..-
-
-
-
HIL