Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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णम्मियदितं राइविणासो
भद्रबाहु संहिता
विदीसएजत्थ |
कंकालज्झइ होहीपर
चक्काऊ
(णम्मियदितं कंकालज्झइ ) जिस शहर में यदि कंकाल (विदीसएजत्थ) दिशाओं में दिखाई दे तो (राइविणासोहोही परचक्काऊ ) परचक्र के द्वारा राजा का विनाश होगा (णसंदेहो ) इसमें सन्देह नहीं है।
भावार्थ जिस शहर में दिशा-विदिशा में कंकाल दिखे तो वहाँ पर परचक्र के द्वारा राजा का विनाश होगा ।। ५५ ।।
जत्थ
संदेहो ॥ ५५ ॥
૪
दीसंति ।
णसंदेहो ।। ५६ ।।
अमिगपक्खीगामेणयरेय होईणयरविणासो
परचक्काऊ
(अमिगपक्खीगामेणयरेय) मांस भक्षी पक्षी जिस ग्राम या नगर के ऊपर ( जत्थ दीसंति) दिखते हैं तो ( परचक्काऊ ) परचक्र के द्वारा (णयरविणासो होई) नगर का विनाश होगा (णसंदेहो ) इसमें सन्देह नहीं हैं।
भावार्थ — मांस भक्षी पक्षी के जत्थे के जत्थे जिस ग्राम या नगर के ऊपर उड़ते हुए दिखे तो नगर का विनाश परचक्र के द्वारा अवश्य होगा, ऐसा समझो ॥ ५६ ॥ अहबालाकीलंता मिलियां जइसव्वदेसिघावंति । जुज्झांति पुणोसव्वे तयहवि जुज्झंति णायव्वो ॥ ५७ ॥ (अहबालाकीलंतामिलियां) जहाँ पर बालक खेलते हुए ( जइसव्वदेसिधावंति ) दौड़ते-दौड़ते (जज्झंतिपुणोसव्वे) आपस में लड़ने लगे तो (तय हविजुज्झंतिणायचो) वहाँ अवश्य युद्ध होगा ।
भावार्थ — जहाँ पर बालक खेलते खेलते आपस में दौड़कर लड़ने लगे तो उस नगर में अवश्य ही युद्ध होगा, ऐसा जानना चाहिये ॥ ५७ ॥
गेहोणि ते कुणतं अग्गी लायंति बहुरमंति । तम्मियगामे अग्गी पंचमदिव (गेहोणि कुणतं अग्गी) यदि बालक गृह से अग्नि ला- लाकर (लायंतिबहुरमंति)
संदेहो ॥ ५८ ॥