Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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परिशिष्टाऽध्यायः
शशिसूर्यो गतौ यस्य सुखस्वात्योपशीतलौ।
मरणं तस्य निर्दिष्टं शीघ्रतोऽरिष्ट वेदिभिः ॥ १५०॥ (यस्य) जिसको (शशि सूर्योगतो) चन्द्र सूर्य न दिखे (सखस्वात्यो पशीतलौ) सुख से श्वांस न आता हो, रुक-रुक कर आता हो तो (अरिष्टवेदिभिः) अरिष्टो के जानकारों ने (तस्य शीघ्रतो मरणंनिर्दिष्ट) उसका शीघ्र मरण होगा ऐसा कहा
भावार्थ-जिसको चन्द्र सूर्य न दिखे, सुख से श्वास नहीं आता हो, श्वांस गति एकदम धीमी हो जाय तो मरण ज्ञान के ज्ञाताओं ने उसका मरण निश्चित होगा ऐसा कहा है।। १५० ॥
जिह्वामलं न मुञ्चति न वेत्ति रसना रसम्।
निरीक्षते न रूपञ्च सप्तदिनं स जीवति ।। १५१ ।।
जो रोगी (जिह्वामलं न मुञ्चति) जिह्वा के ऊपर का मल नहीं छोड़ता हो (न वेत्ति रसना रसम्) जीभ का स्वाद लेना छूट जाय और (निरीक्षते न रूपञ्च) अपना रूप भी न देखे तो (स) उसका (सप्तदिनं जीवति) सात दिन का मात्र जीवन शेष रहा ऐसा समझो।
भावार्थ--जिस रोगी के जीभ का मैल कभी नष्ट नहीं होता है और जीभ ने अपना स्वाद लेना छोड़ दिया, न किसी का रूप देख पाती हों अर्थात् समस्त इन्द्रियाँ अपना काम करना छोड़ दे तो उसकी आयु सात दिन की है।। १५१॥
वह्नि चन्द्रौ न पश्येच्च शुभ्रं वदति कृष्णकम् ।
तुङ्गच्छायां न जानाति मृत्युस्तस्य समागतः ।। १५२।। (बहिचन्द्रौ न पश्येत्) जिसको अग्नि और चन्द्रमा न दिखे (शुभ्रं वदति कृष्णकम्) सफेद पदार्थ काले दिखे (तुङ्गच्छायां न जानाति) जिसको विशाल छाया नहीं दिखे (तस्ममृत्युः समागत:) तो उसकी आयु खतम होने वाली है।।
भावार्थ-जो रोगी अग्नि और चन्द्रमा को न देखे, सफेद पदार्थो को काले देखे, विशाल छाया भी न देखे तो वह शीघ्र ही मरने वाला है, ऐसा समझो॥१५२।।