Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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श्री ऋषिपुत्राचार्यप्रणीत
( निमित्त शास्त्रम् )
मङ्गलाचरणम् सो जा जबड उसाहो अगर संसार सायशिरणो।
झाणेणलेणजेयण लीला इडिज्जि जिययमणो॥१॥ (झाणेणलेणजेयण लीला) जिन्होंने ज्ञान ध्यान में लीन होकर (इट्ठिन्जि जिययणो) इन्द्रियों के विषयों को जीत लिया है (अणंतसंप्सारसायणुत्तिण्णो) और अनन्त संसार सागर से पार हो चुके है (सो) इसलिए (उसहो) उन, अर्थात् ऋषभदेव स्वामी की (जयड जयउ) जय हो, जय हो।
भावार्थ-जो ज्ञान ध्यान में लीन होकर इन्द्रियों के विषयों के ऊपर विजय प्राप्त कर ली है। और अनन्त संसार सागर से पार हो चुके हैं, ऐसे ऋषभदेव स्वामी की जय हो, जय हो॥१॥
णमिऊण वइडमार्ण णव केवललद्धि मंडियं विमलं।
वोच्छं दव्वणिमितंरिसि पुत्तयणामदो तत्त्व॥२॥ (णवकवेलद्धिमंडियंविमलं) केवल नौ लब्धियों से मण्डित होकर विमल हो गये है, ऐसे (बड्ढमाणं णमिऊण) वर्द्धमान स्वामी को नमस्कार करके (दव्वणिमितं वोच्छं) निमित्त शास्त्र को (रिसिपुत्तयणा मदोतत्त्थ) मैं ऋषिपुत्र नाम का मुनि कहूँगा।
भावार्थ-जो केवल नौ लब्धियों से सहित है, ऐसे वर्द्धमान स्वामी को नमस्कार करके मैं ऋषि पुत्र नाम का आचार्य निमित्त शास्त्र को कहूँगा ।। २ ।।
अहखलुमारिसि पुत्तिय णामणिमितुप्पाय मस्सवणं, पक्खइस्सामि वग्गमुणिसिद्धकम्म।