Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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निमित शास्त्रम्
(हेमंतकतुणकगिण्हे) यदि हेमन्त ऋतु में (सुखदक्खिणोयजयवाऊ) सूखपूर्वक दक्षिण दिशा में वायु चले (अण्णुण्णदिसा वायइ) और ठण्ड से मिश्रित हो तो (वारिसामुतच्छणायव्बो) शीघ्र ही वर्षा होगी।
भावार्थ-यदि हेमन्त ऋतु अर्थात् (माघ फाल्गुन में) शीतोष्ण वायु चले तो समझो शीघ्र वर्षा होने वाली है।॥ २५॥
ववरूव सूरस्सुदयच्छमणे पडंति जलविंद ऊणहयलाऊ।
तइहेदिवहे वरसइ सहेसे णस्थिसंदेहो॥२६ ।। (सूरस्सुदयच्छमणे) सूर्य के उदय या अस्त होने के समय में (ववरूव जलविंद) सतत जल की बून्दे (ऊणहयलाऊ) गरम-गरम (पडंति) पड़े तो (तईहेदिवहे) तीसरे दिन (तसे) उस देश में (वरसइ णात्थिसंदेहो) वर्षा होगी इसमें कोई सन्देह नहीं
है।
भावार्थ—सूर्य के उदय और अस्त काल में सतत ओस रूप जल की बूंदे पड़े तो तीसरे दिन अवश्य वर्षा होगा, इसमें कोई सन्देह नहीं हैं।॥ २६॥
जदिचंडवायुवायदि अहपुणमदछमिवायथेवाऊ।
तहिं होही जलवरसे पंचमदिवहे णसंदेहो ॥२७॥ (जतिचंडवायुवायदि) यदि प्रचण्ड वायु चले (अहपुणमछमिवायथेवाऊ) और मध्य में धीरे-धीरे वायु चले तो (तहिं होही जलवरसे पंचमदिवहे) पाँचवे दिन जल वर्षा होगी (णसंदेहो) इसमें कोई सन्देह नहीं है।
भावार्थयदि प्रचण्ड वायु चले और बीच-बीच में धीमी-धीमी वायु चले तो समझो पाँचवें दिन वर्षा होगी इसमें कोई सन्देह नहीं है।। २७॥
छित्तेण कोईपुच्छइ धराम्हिछायंतहद्द वसणो वा।
उदकुंभाम्मियहच्छो वरसइ अज्जंतणायव्वो॥२८॥ (छित्तेण कोईपुच्छइ) अचानक कोई आकर पूछे कि (घरम्हिछायंत हद्द वसणो वा) क्या घर को छा लिया (उदकुंभाम्मियहच्छो) और वस्त्रसहित होने पर भी ठण्डी लगने लगे घड़ों का पानी गर्म मालूम पड़े तो समझो (वरसइ अज्जतणायचो) आजकल में ही पानी की वर्षा होगी।