Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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परिशिष्टाऽध्यायः
मानव शरीर में पाँच करोड़ अड़सठ लाख निन्यानवें हजार पाँच सौ चौरासी रोग हैं विषयाशक्त इन रोगों को नहीं देखता है। और इन्द्रिय विषयों में आसक्त होकर भोगों में पड़ा रहता है, किन्तु धर्मात्मा व्यक्ति रोगों को समझकर अपने परिणाम समाधिमरण की और लगाता है।
कषायको कृश करता हुआ शरीर कृषकर धर्मभावनापूर्वक शरीर का त्याग करना सल्लेखना है।
अरिष्टों के पिण्डस्य, पदस्थ और रूपस्थ ये तीन भेद कहे हैं। ___ इनको देखने पर रोगी का मरण कब और कितने दिनों में होगा इसका पूर्ण ज्ञान होता है सो इसको जानकर भव्य और धर्मात्माओं को सावधान रखें।
जब वात, पित्त, कफ, कुपित हो जाय अथवा इन तीनों में से एक भी तीव्रता को धारण कर लेने पर शरीर में अरिष्ट प्रकट होते हैं, जब शरीर में अरिष्ट प्रकट हो गया तो समझो उसका मरण होने वाला है।
शरीर में अप्राकृतिक रूप से अनेक प्रकार की विकृति दिखने पर पिण्डस्थ अरिष्ट कहा है।
चन्द्रमा, सूर्य, दीपक व अन्य दूसरी वस्तुओं के विपरीत दिखने पर पदस्थ अरिष्ट कहा है।
छाया पुरुष, स्वप्न दर्शन, प्रत्यक्ष अनुमान जन्य प्रश्न द्वारा वर्णन को रूपस्थ अरिष्ट कहा है।
इस अध्याय में छाया पुरुष को देखने की रीति व उसका फल वर्णन किया है, छाया पुरुष अत्यन्त शुभ्र व निर्मल दिखे तो, सुख शान्ति समृद्धि निरोगता बढ़ती
छाया पुरुष में विकार दिखे तो अनिष्ट कारक होता है इत्यादि ज्योतिष अष्टाँग निमित्त ज्ञान के वेता को प्रत्येक निमित्तों की जानकारी रखनी चाहिए, सावधानी पूर्वक ही फलादेश कहें, निमित्त ज्ञानी संयमी होना चाहिये। तीक्ष्ण बुद्धिवाला होना चाहिये, फलाफल का विचार करने वाला होना चाहिए।
स्वप्न आठ प्रकार के होते है। पाप रहित, मन्त्र साधना द्वारा सम्पन्न मंत्रज्ञ