Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
८१९
परिशिष्टाऽध्यायः
नवीन वस्त्र धारण करने पर यदि (लिप्ते मषी कर्दम गोमयाश्वै) स्याही से वा कीचड़ से अथवा गोबर से लिप्त हो जाने पर वा (श्छिन्नेप्रदग्धेस्फुटिते च विन्द्यात्) छिन्न हो जाने पर जल जाने पर फट जाने पर (पुष्टे नवेऽल्याल्पतरं च भुङ्क्तेपायेशुभं) अशुभ फल होता है (वाधिकमुत्तरीथे) यह फल उत्तरीय वस्त्रमें अधिक होता है।
भावार्थ-यदि नये वस्त्र धारण करने पर स्याही में या कीचड़ में अथवा गोबर में लिप्त हो जाय अथवा क्षीण हो जाय, जल जाय वा फट जाय तो अशुभ फल होता है, यह सब फल अधिकता से उत्तरीय वस्त्रों में होता है अन्य में नहीं ॥ १९१॥
रूग्राक्षसां शेष्वधयापि मृत्युः पुंज-मताच भमुध्य भाये।
भागेऽमरणामथभोगवृद्धिः प्रान्तेषुर्वत्र वदन्त्यनिष्टम्॥१९२॥
(रूग्राक्षसांशेष्व वापिमृत्युः) राक्षस भाग में यदि वस्त्र के अन्दर गोबर, कीचड़ व स्याही लग जाय या फट जाय जल जाय तो वस्त्र के मालिक को रोग या मृत्यु होती है, (मनुष्यभागे पुंजन्म तेजश्च) मनुष्य भाग में यदि गोबरादि लग जाय तो तेजवान पुत्र की प्राप्ति होती है (भागेऽमराणामथभोगवृद्धिः) देव के स्थान पर कीचड़ादि लग जाय तो भोगों की वृद्धि होती है। (प्रान्तेषु सर्वत्र वदन्त्यनिष्टम्) सभी स्थानों पर यदि वस्त्र में छेद हो जाय तो अनिष्ट फल होता है।
भावार्थ-राक्षस स्थान पर वस्त्र फट जाय या गोबरादिक लग जाय तो वस्त्रके मालिक को रोग या मरण हो और मनुष्य भाग में हो तो पुत्र जन्म होता है देवता भाग में छेदादिक हो तो भोंगो की प्राप्ति होती है, पूरे वस्त्र में छेद हो जाय तो अनिष्ट फल होता है समस्त नवीन वस्त्र छेद वाला हो जाय तो अशुभ फल होता है। १९२॥
कङ्कल्लवोलूककपोतकाक क्रव्याद गोमायु खरोष्ट्र सर्पाः । छेदाकृतिर्दैवत भाग गापि पुंसां भयंमृत्युसमं करोति ।। १९३ ।।
यदि (र्दैवत भागगापि) नवीन वस्त्र के देवता भाग में (कङ्कल्लवोलूक कपोत) कंक, पक्षी, मेढक, कबूतर (काक क्रव्याद गोमायु खरोष्ट्र सर्पाः) कौआ, मांसभक्षी, गिद्ध, गधा, ऊँट, सर्प के आकारके (छेदाकृति) छेद हो जाय तो (पुंसां) पुरुष को (भयं मृत्युसमं करोति) मरण के समान भय उपस्थित करता है।