Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
८१७
परिशिष्टाऽध्यायः
भावार्थ आश्लेषामें वस्त्र धारण करने से वस्त्र नष्ट हो जाता है मघा नक्षत्र में मृत्यु होती है पूर्वाफाल्गुनी में वस्त्र धारण करने से राजा का भय होता है, उत्तराफाल्गुनी में वस्त्र धारण करने से धन की प्राप्ति होती है ।। १८५ ।।
शुभागमस्तु
करेण धर्मसिद्धयः शुभं च भोज्यमानिले द्विदैवते
(करेण धर्मसिद्धयः ) हस्त में वस्त्र धारण करने से धर्म की सिद्धि होती है (शुभागमस्तु चित्रया) चित्रा नक्षत्र में क्षुभ आगमन होता है । ( भोज्य मानिले शुभं च) स्वाति नक्षत्र में भोजन की प्राप्ति होती है (द्वि दैवते जनप्रियः) विशाखा में नवीन वस्त्र धारण करने से जनप्रिय हो जाता है।
चित्रया | जनप्रियः ।। १८६ ॥
भावार्थ- - हस्त नक्षत्र में नवीन वस्त्र धारण करने से कार्य सिद्धि होती है, चित्रा में वस्त्र धारण करने से उत्तम भोजन की प्राप्ति और विशाखा में नवीन वस्त्र धारण करने से जनप्रिय होता है ।। १८६ ॥
मित्रभे
सुहृद्युतिच जलाप्लुतिश्च नैऋते
पुरन्दरेऽम्बर
रुजो
क्षयः । जलाधिदैवते ।। १८७ ॥
(सुहृद्यातिश्चमित्रभे) अनुराधा में वस्त्र धारण करने से मित्रलाभ होता है ( पुरन्दरेऽम्बरक्षयः) ज्येष्ठामें नवीन वस्त्र धारण करने से व्यक्ति जल में डूबता है ( रुजो जलाधिदैवते) पूर्वाषाढ़ा में वस्त्र धारण करने से रोग उत्पन्न होता है ।
भावार्थ - अनुराधा में वस्त्र धारण करना मित्र लाभ कराता है ज्येष्ठा में नवीन वस्त्र धारण करना वस्त्र क्षय कराता है मूल में धारण करने से व्यक्ति जल में डूबता है पूर्वाषाढ़ा में रोग उत्पन्न कराता है ॥ १८७ ॥
मिष्ठमन्नमथविश्वदैवते वैष्णवे भवति
नेत्ररोगता । धान्यलब्धिमपि वासवे विदुर्वारुणेविषकृतं महद्भयम् ।। १८८ ।।
( विश्वदैवते मिष्टमन्नमथ) उत्तराषाढ़ा में मिष्ठान्न की प्राप्ति (वैष्णवे नेत्र रोगता भवति) श्रवण में वस्त्र धारण करने से नेत्र रोग उत्पन्न होता है। (वासवे मपि धान्यलब्धि)