Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
८२४
जोइसणाणो विहपणविऊण व्याव्य सव्वाणि,
तुप्पायं तं खलुतिवि देण बोच्छामि॥३॥
(अहखलुमारिसिपुत्तिय) अब मैं ऋषि पुत्र निश्चय से (णामणिमि तुप्पायमस्सयणपक्खइस्मामि) निमित्तों के उपाय को (वग्गमुणि सिद्धकम्म) सर्व कार्य की सिद्धि के लिये (जो इसणाणोविहपण विऊण) सर्वश्रेष्ठ ज्योतिष ज्ञान को (व्वाव्वसव्वाणि तुप्पायं) सब प्रकार से उसके उपाय को (तं खलुतिविदेणवोच्छामि) त्रिशुद्धि पूर्वक कहूँगा।
भावार्थ- अब मैं ऋषि पुत्र निश्चय से निमित्त ज्ञान तीन प्रकार का है, उसके लक्षण व फल को सब प्रकार से कहूँगा, सो तुम जानो।।३॥
निमित्तों के भेद जेदिट्ट भुविरसपण जेदिट्ठा कुहमेण कत्ताणं।
सदसंकुलेन दिवा वउसट्ठिय एणणाणधिया।॥४॥ (जेदिक भुविरसण्ण) जो भूमि पर दिखाई दे रहा है (जेदिवा कुहमेण कत्ताणं) और जो आकाश में दिखाई देता है (सदसंकुलेन दिवा) तथा जिसका शब्द ही सुनाई दे रहा है (वउसट्ठिय एणणाणधिया) ऐसे निमित्त ज्ञान के विद्वानों ने तीन भेद कहे है।
भावार्थ-जो भूमि पर दिखाई दे आकाश में दिखाई देता है तथा मात्र शब्द सुनाई पड़े, ऐसे निमित्त ज्ञान के विद्वानों ने तीन भेद कहे हैं॥४॥
जेचारणेणदिवा अणं दो सायसहम्मणाणेण।
जोपाहुणेण भणियां ते खलुतिविहेण वोच्छामि॥५॥ (जेचारणेणदिवा) जो चारण मुनियों के द्वारा देखा गया है (दो सायसहम्मणाणेण) वैसा ही विद्वानों ने वर्णन किया है (जोपाहुणेण भणियां) उसी निमित्त ज्ञान को (तं खलुतिविहेण वोच्छामि) त्रियोग की शुद्धि पूर्वक कहूँगा।
भावार्थ-जो चारण मुनियों ने कहा है, एवं उसी प्रकार अन्य विद्वानों ने वर्णन किया, उसी निमित्तज्ञान को तीन योग की शुद्धि पूर्वक मैं कहूँगा ।।५।।