Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
भद्रबाहु संहिता
भावार्थ अब शब्द निमित्त जानने के लिये मन्त्र वादी स्नान करके सफेद शुद्ध कपड़ा पहने फिर अम्बिका देवी की मूर्ति का दूध, घी, शक्कर आदि रसादिक से अभिषेक करावे ॥ १५८ ॥
८०८
अर्चित्वा चन्दनैः पुष्पैः श्वेत वस्त्र सुवेष्टिताम् । प्रक्षिप्य वामकक्षायां
गृहीत्वापुरुस्ततः ।। १५९ ।। फिर उस अम्बिका देवी की मूर्ति को (अर्चित्वा चन्दनैः पुष्पैः ) चन्दन पुष्प से पूजा कर (श्वेतवस्त्र सुवेष्टिताम् ) सफेद वस्त्राभूषणों से श्रृंगारित करके (प्रक्षिप्यवामकक्षायां) अनन्तर बाँये हाथ के नीचे रखकर ( पुरुषस्ततः गृहीत्वा ) पुरुष उसको ग्रहण करे ।
भावार्थ — उस अम्बिका देवी की मूर्ति का चन्दन पुष्प नैवेद्यादिक से पूजा करके सफेद वस्त्र पहनावे आभूषण से श्रृंगारित करे फिर वाम हाथ को नीचे रखकर आगे की विधि करे ।। १५९ ॥
निशाया: प्रथमे यामे प्रभाते यदि वा व्रजेत् ।
इमं मन्त्रं पठन् व्यक्तं श्रोतुं शब्दं शुभाशुभम् ॥ १६० ॥
( निशाया: प्रथमेयामे) रात्रि के प्रथम प्रहर में (प्रभाते यदि वा व्रजेत् ) प्रभात में जावें (इममन्त्रंपठन व्यक्तं ) इस प्रकार व्यक्त रूप से मन्त्र को पढ़े, (श्रोतुं शब्द शुभाशुभम् ) फिर शुभाशुभ शब्द को सुने ।
भावार्थ रात्रि के प्रथम प्रहर में एवं प्रातः काल में जावे और व्यक्त रूप से मन्त्र को पढ़कर शुभाशुभ शब्द को सुनने के लिये जावे ।। १६० ।।
मन्त्र
ॐ ह्रीं अम्बे कूष्माण्डिनि बाह्मणि वदवद्वागीश्वरि स्वाहा । इस मन्त्र का साढ़े बारह हजार जाप करे उसके बाद उपर्युक्त विधि करे ॥ १६० ॥ पुरवीथ्यां व्रजन् शब्दमाद्यं श्रुत्वा स्मरन् व्यावर्तते तस्माद्रागत्य
शुभाशुभम् । प्रविचारयेत् ॥ १६१ ॥
( पुरवीभ्यां व्रजन) नगर की गलीयों में घूमे (माद्यशुभाशुभम् शब्द श्रुत्वा ) और जो भी शुभाशुभ शब्द पहले ने ( स्मरन् व्यावर्तते) और उसका स्मरण करता हुआ ( तस्मादागत्य प्रविचारयेत् ) आकर उसके ऊपर विचार करे ।
i