Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
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(गृहिण:) गृहस्थ (पुंसः) पुरुष (सपुत्रा भूषितास्त्रियः) गोद में पुत्र लिये शृंगारित स्त्री।
भावार्थ-अम्बिका, छत्र, माला, ध्वजा, गन्ध, पूर्णकुम्भ, बैल, गृहस्थ पुरुष, गोद में पुत्र लिये शृंगारित स्त्री देखने पर इनका शब्द सुनने पर शुभ होता है॥१६३।।
इत्यादिदर्शनं श्रेष्ठं सर्वकार्येषु सिद्धिदम् ।
छत्रादिपात भङ्गादि दर्शनं शोभनं न हि॥१६५।।
(इत्यादि दर्शनं श्रेष्ठं) इत्यादि पदार्थों के देखने पर शुभ होता है श्रेष्ठ, एवं (सर्व कार्येषुसिद्धिदम्) सम्पूर्ण कार्यों की सिद्धि देने वाला है (छत्रादिपात भङ्गादि) छत्र का गिरना, छत्र भंगादि (दर्शन) का दर्शन (शोभनं न हि) शुभ नहीं है।
भावार्थ—इत्यादि सारी शुभ वस्तुएँ देखने पर शुभ होता है सर्वकार्यों की सिद्धि करने वाला है किन्तु कार्य के प्रारम्भ में छत्र भंग छत्रपात आदि दिखने पर अशुभ होता है।। १६५॥
नष्टो भग्नश्च शोकस्थ: पतितो लुञ्चितो गतः। शान्तित: पातितो बद्धो भीतो दृष्टश्च चूर्णितः ।। १६६ ।। चौरो बद्धो हत: काल: प्रदग्धः खण्डितो मृतः।
उद्वासित: पुनर्गम इत्याद्या दुःखदा:स्मृताः॥१६७ ।। (नष्टो भग्नश्च शोकस्थः) नष्ट, भग्न, शोकस्थ (पतितो) पतित (लुञ्चितोगत:) लुञ्चित जिसकी (शान्तित:) शान्ति भंग हो गई है (पातितो) गिराया गया हो (बद्धो) बन्धन में पड़ा हो (भीतोद्दष्टश्च चूर्णित:) भय से डरा हो, काटा गया हो चूर्णित किया गया हो (चौरो) चोर हो (बद्धो) बाँधा हुआ हो (हतः) मारा गया हो (काल:) मुर्दा हो (प्रदग्धः) जला हुआ हो (खण्डितो मृत:) खण्डित हो मरा हुआ हो (उद्धासित: पुनाम) नगर से निकल कर पुन: नगर में बसने आया हो (इत्याद्या दुःखदा:स्मृताः) इत्यादि के देखने पर दुःखकारक होता है।
भावार्थ----नष्ट, भग्न, शोकस्थ, पतित, मुण्डित, अशान्त, गिराया गया,