Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता |
८१२
भावार्थ-तर्जनी के स्थापना के बाद रोगी को भूमि पर देखने को कहे अगर रोगी को सूर्य बिम्ब सरीखा वर्तुलाकार दिखाई पड़े तो उसकी छह महीने की आयु समझो। १७० ॥
इत्यङ्गुलिप्रश्ननिमित्तं शतवारं सुधीमन्त्र्यपावनम् ।
कांस्यभाजने तेन प्रक्षाल्य हस्तयुगलं रोगिण: पुनः ।। १७१॥
(इत्यङ्गुलिप्रश्ननिमित्तं) यहाँ तक अंगुलि प्रश्न निमित्त का वर्णन किया। (सुधी) बुद्धिमान (पावनम् शतवारमन्त्र्य) पावन मन्त्रका १०८ बार जाप करे (कांस्य भाजने) काँसे के बर्तन में (तेन) उस (रोगिणः) रोगी के (हस्तयुगलं) दोनों हाथों को (प्रक्षाल्य) धुलवा करके (पुन:) फिर।
भावार्थ-यहाँ तक अंगुलि निमित्त का वर्णन किया। अब बुद्धिमान पावन मन्त्र का १०८ बार जप कर काँसे के बर्तन में रोगी के दोनों हाथों को लाख से धुलवा कर पुनः ।। १७१ ।।
एक वर्णाजहि क्षीराष्टाधिकैः शतविन्दुभिः। प्रक्षाल्य दीयते लेपो गोमूत्रक्षीरयोः क्रमात् ।। १७२ ॥
मन्त्रित करता हुआ (एकवर्णाज्ज हि क्षीराष्टाधिकैः) एक वर्ण की गाय का दूध १०८ बार मन्त्रित कर (शतविन्दुभिः) सौ बिन्दुओं को व (गोमूत्र क्षीरयोः) गाय का मूत्र दूध (क्रमात्) क्रम से दोनों हाथों को (प्रक्षाल्य) प्रक्षालित करके (लेपो दीयते) लेप करे।
भावार्थ--पुन: रोगी के दोनों हाथों को गाय के मूत्र और दूध से धुलवाकर मन्त्र से १०८ बार मन्त्रित करके क्रमश: लेप करे यहाँ पर शत बिन्दु शब्द आया है, उसका अर्थ समझ में नहीं आया किन्तु मेरे अभिप्राय से १०८ बार हाथ धुलवाये ऐसा होगा ।। १७२ ।।
प्रक्षालितकरयुगलश्चिन्तय दिनमासक्रमशः। पञ्चदशवामहस्ते पञ्चदशतिथिश्च दक्षिणे पाणौ।। १७३ ।।