Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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परिशिष्टाऽध्यायः
(प्रक्षलितकरयुगलः ) दोनों हाथों को प्रक्षालित कर ( क्रमशः) क्रमशे ( दिनमासश्चिन्तय) दिन महिनों का चिन्तवन करे, ( वामहस्तेपञ्चदश) वाम हाथों मैं पन्द्रह और (पञ्चदशतिथिश्च ) पन्द्रह तिथियों को (दक्षिणे पाणौ ) दक्षिण अंगुलियों पर स्थापना करे ।
भावार्थ- दोनों हाथों को प्रक्षालित कर क्रमश: पन्द्रह तिथियों की बाम हाथ के अंगुलियों पर और पन्द्रह तिथियों को दक्षिण हाथ की अंगुलियों पर स्थापना करे ॥ १७३ ॥
शुक्लंपक्षं वामे दक्षिण हस्ते च चिन्तयेत् कृष्णम् । प्रतिपत्प्रमुखास्तिथय उभयो: करयोः पर्वरेखासु ।। १७४ ॥
( शुक्लपक्षवामे) वाम हाथ में शुक्ल पक्ष की ओर (दक्षिण हस्ते च ) दक्षिण हाथ में (कृष्णम्) कृष्णपक्ष का ( चिन्तयेत् ) चिन्तवन करे (उभयोः करयोः पूर्वरखासु ) दोनों हाथों की पर्वरेखाओं में (प्रतिपत्यमुखातिशय) प्रमुख तिथियों की स्थापना
करे ।
भावार्थ -- वाम हाथ में शुक्ल पक्ष और दक्षिण हाथ में कृष्ण पक्ष की स्थापना करे, दोनों हाथों की पूर्व रेखा पर तिथियों की स्थापना करे || १७४ ३१
एकद्विि हस्तयुगलं
चतुः संख्यमरिष्टं तत्र तथोद्वर्त्यप्रातः
चिन्तयेत् । गोरोचनरैस: ।। १७५ ।।
( एकद्वित्रिचतुः संख्य ) एक, दो, तीन, चार की संख्या पर काले दाग दिखे तो (तत्रमरिष्टंचिन्तयेत् ) वहाँ पर अरिष्ट होगा ऐसा चिन्तवन करे। (प्रात: गोरोचनरैस: ) प्रातः काल में स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहनकर उपर्युक्त मन्त्र से गोरोचन को मन्त्रितकर रोगी के ( तथोद्वर्त्यहस्तयुगलं ) दोनों हाथों को गोरोचन से धुलवावे ।
भावार्थ — उपर्युक्त विधि के अनुसार दोनों हाथों पर स्थापना आदि करके फिर देखे अगर एक, दो, तीन, चार पर्वों पर रोगी को काले बिन्दु दिखे तो वहाँ पर अरिष्ट समझो अर्थात् रोगी मर जायगा । इसी प्रकार अब गोरोचन कहते । पूर्वोक्त रीति से लाक्षारस के समान ही गोरोचन को मंत्रित कर रोगी के दोनों हाथ गोरोचन से धुलवावे ॥ १७५ ॥