Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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परिशिष्टाऽध्यायः
मरा हुआ, जला हुआ, खण्डित, मरा हुआ, नगर से निकल कर पुन: नगर में बसता हुआ इत्यादि को देखे तो अशुभ है अर्थात् दुःख उत्पन्न करने वाला है॥१६६-१६७॥
इत्येवं निमित्तकं सर्वं कार्य निवेदनम्। मन्त्रोऽयं जयितः सिद्धथेद्वारस्य प्रतिमाग्रतः ॥ १६८॥
(इत्येवंनिमित्तकं) इस प्रकार निमित्तों का (सर्वं कार्यं निवेदनम्) सर्व कार्यों के लिये निवेदन किया, (द्वीरस्य प्रतिमाग्रत:) वीर भगवान की प्रतिमा के आगे (मन्त्रोऽयं जपितः सिद्धये) इस मन्त्र का जाप करने से सिद्ध हो जाता है।
भावार्थ-इस प्रकार के निमित्तों का मैंने सर्व कार्य के लिये निवेदन किया। इस मन्त्र को महावीर भगवान के सामने जाप करने से सिद्ध हो जाता है। १६८।। मन्त्र-ॐ ह्रीं णमो अरिहंतागं ह्रीं अवतर-अवतर स्वाहा।
अष्टोत्तर शतपुष्पैः मालतीनां मनोहरैः। मालती पुष्पों १०८ से
जाप करे। मन्त्रेणानेन हस्तस्य दक्षिणस्य च तर्जनी।
अष्टाधिकशतं पारमभिमन्त्र्य मषीकृताम्॥१६९॥
(मन्त्रेणानेन) इस मन्त्र से (दक्षिणस्य च हस्तस्य तर्जनी) दक्षिण हानि की तर्जनी को (अष्टाधिक शतं वार) एक सौ आठ बार (मभिमन्त्र्य) मन्त्रित करके (मषीकृताम्) रोगी की आँखों पर रखे।
भावार्थ-इस मन्त्र से दक्षिण हाथ की तर्जनी को १०८ बार मन्त्रित करके रोगी की आँखों पर रखे॥१६९ ।।
तर्जन्या स्थापयेभूमौ रविबिम्बं सुवर्तुलम्।
रोगी पश्यति चेद्विम्बमायुः षण्मास मध्यगम्।। १७० ।।
(तर्जन्यास्थापयेद) तर्जनी को स्थापन करने के बाद (भूमौ रवि बिम्बं सुवर्तुलम्) भूमि पर रोगी को देखने को कहे अगर (रोगी) रोगी सूर्य बिम्ब को वर्तुलाकार (चेद्विम्ब पश्यति) बिम्ब को देखता है तो उसकी (आयु:षष्मासमध्याम्) छह महीने की समझो।