Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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परिशिष्टाऽध्यायः
भावार्थ—फिर उसके ऊपर एक नये कुण्ड को ढक देवे जूही के फूलों से १०८ बार मन्त्र का जाप करे॥१५५॥
क्षीरान्न भोजनं कृत्वा भूमौ सुप्येत मन्त्रिणा।
प्रात: पश्येत्स तत्रैव तैलमध्ये निजं मुखम् ॥ १५६॥ उसके बाद (क्षीरान्न भोजनंकृत्वा) खीर का भोजन करके ((मन्त्रिणा भूमौ सुप्येत्) मंत्री भूमि पर सोवे (प्रातः) प्रात:काल में (तत्रैव) वहाँ पर (तैलमध्ये निजमुखम् पश्येत्) तेल के अन्दर अपने मुँह को देखे।
भावार्थ-उसके बाद खीर का मंत्री भोजन कर भूमि पर सोवे प्रात:काल में उस तेल के अन्दर अपने मुँह को देखे ॥१५६॥
निजास्यं चेन पश्येच्च षण्मासं स जीवति।
इत्येवं च समासन द्विधा लिने प्रभाषितम् ॥१५७।। (निजास्यनेन्न पश्येच्) अगर उस तेल में अपना मुँह नहीं दिखाई देवे तो (षण्मासं स जीवति) उसकी आयु छह महीने की बाकी हैं (इत्येवं च समायेन) इस प्रकार अच्छी तरह से (लिङ्गद्विधाप्रभाषितम्) लिङ्ग के दो भेद कहे है।
भावार्थ-अगर उस तेल में अपना मुँह नहीं दिखलाई पड़े तो उसकी आयु छह महीने की समझो इस तरह दो प्रकार के लिङ्ग का मैंने अच्छी प्रकार से वर्णन किया है।। १५७।। मन्त्र-ॐ ह्रीं ला: हः प: लक्ष्मी इवीं कुरू कुरू स्वाहा। इस मन्त्र को १०८ बार जाइ के फूलों से तेल को मन्त्री करे।
___ शब्द निमित्त का वर्णन शब्दनिमित्तं पूर्वं स्नात्वा निमित्ततः शुचिवासा विशुद्धधीः।
अम्बिकाप्रतिमां शुद्धां स्नापयित्वा रसादिकैः ।। १५८ ।। (शब्दनिमित्तं पूर्व) शब्द निमित्त देखने से पूर्व (निमित्ततः) निमित्त ज्ञानी (स्नात्वा) स्नान करके (विशुद्ध घी:) जिसकी बुद्धि विशुद्ध हो गई है ऐ..[ मन्त्री (शुचिवासविशुद्धधी:) शुद्ध वस्त्र धारण करके (अम्बिकाप्रतिमां) अम्बिका देवी की प्रतिमा को (शुद्धां) शुद्ध (रसादिकै) रसादिकसे (स्नापयित्वा) स्नान कराये।