Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
परिशिष्टाऽध्यायः
पर (श्वेत सर्पणदृश्यते) सफेद सांप को देख कर (यदि शीघ्रतः बुध्यते) शीघ्र जाग्रत हो जाता है (तस्य) उसको (महानलाभो भवेत्) महान लाभ होता है।
भावार्थ-जिस मनुष्य को स्वप्न में अपने दाहिनी और सफेद रंग का सांप दिखे और वह तुरन्त ही जाग जाय तो उसको महान लाभ होता है।। १०५ ।।
अगम्यागमनं पश्येदपेयं पानकं नरः । विद्यार्थकाम लाभस्तु जायते तस्य निश्चितम्।। १०६॥
जो (नरः) मनुष्य (अगम्यां गमनं) अगम्य स्त्री के साथ गमन करता है (पेयं पानकं पश्येद्) पीने योग्य ही होने पर उसको पीता है। (तस्य) उसको (विद्यार्थी काम लाभस्तु निश्चितम् जायते) विद्या, अर्थ, काम का लाभ निश्चित रूप से होता है।
भावार्थ-जो मनुष्य अगम्य स्त्री के साथ गमन करे पीने योग्य पदार्थ नहीं होने पर भी उसको पीवे ऐसा स्वप्न में देखे तो उसको महान विद्या, अर्थ, काम, लाभ निश्चित रूप से होता है॥१०६।।।
सफेनं पिबति क्षीरं रौप्य भाजन संस्थितम्।
धन धान्यादि सम्पत्तिर्विद्यालाभस्तु तस्य वै।। १०७ ॥
जो व्यक्ति स्वप्न में (रोप्य भाजन संस्थितम्) चांदी के बर्तन में स्थित होकर (क्षीरं सफेनं पिबति) दूध को फेन सहित पीता है (तस्य वै) उसको (धनधान्यादि सम्पत्तिः) धन धान्य सम्पत्ति (विद्यालाभस्तु) और विद्या का लाभ होता है।
भावार्थ-जो व्यक्ति स्वप्न में चांदी के बर्तन में स्थित होकर फेन सहित दूध को पीता है उसको धन धान्य सम्पत्ति का व विद्या का लाभ होता है॥१०७॥
घटिताघटितं हेम पीतं पुष्पं फलं तथा।
तस्मै दत्ते जनः कोऽपि लाभस्तस्य सुवर्णजः ।। १०८॥ जो व्यक्ति स्वप्न में (घटिताघटितं हेम) स्वर्ण के आभूषणों को (तथा) तथा (पीतं पुष्पं फलं) पीले पुष्प फल को (तस्मैदत्ते जनः कोऽपि) कोई भी पुरुष उसे देवे तो (लाभस्तस्य सुवर्णजः) उसको स्वर्ण का लाभ होता है।