Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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परिशिष्टाऽध्यायः
कृष्णा च विकृता नारी रौद्राक्षी च भयप्रदा।
कर्षति दक्षिणाशायां यं ज्ञेयोमृत एव सः॥१२५॥ (य) जिसको स्वप्न में (कृष्णा च विकृता नारी) काली और विकृत स्त्री (रौद्राक्षी च भयप्रद) रौद्र रूप भय उत्पन्न करने वाली (दक्षिणाशायां कषांते) दक्षिण दिशा की ओर खींच कर ले जावे तो (स:) वह (मृत एव ज्ञेयो) मृत के समान समझो वह शीघ्र मर जायगा।
भावार्थ-जिसको स्वप्न में काली और काले कपड़े पहने हुए रौद्र रूप भय उत्पन्न करने वाली स्त्री अगर दक्षिण दिशा की ओर खींच कर ले जावे तो उसका मरण शीघ्र होगा॥१२५ ।।
मुण्डितं जटिलं रूक्षं मलिनं नीलवाससम् ।
रुष्टं पश्यति यः स्वप्ने भयं तस्य प्रजायते।। १२६ ॥ (य: स्वप्ने) जो स्वप्न में (मुण्डितं जटिलं रूक्षं) मुण्डित, जटिल, रूक्ष (मलिनं) मलिन (नीलवाससम्) नीले कपड़े पहने हुऐ (रुष्टं पश्यति) रुष्ट दिखाई देने वाली स्त्री को देखे तो (तस्य) उसको (भयं पूजायते) भय उत्पन्न होगा। ___भावार्थ—जो स्वप्न में मुण्डित, जटिल, रूक्ष, मलिन, नीले कपड़े पहने हुऐ रूक्ष दिखाई देने वाली स्त्री दिखे तो उसको भय उत्पन्न होता है।। १२६॥
दुर्गन्धं पाण्डुरं भीमं तापसं व्याधिविकृतिम् ।
पश्यति स्वप्ने ग्लानिं तस्य निरूपयेत् ।। १२७ ।। (स्वप्ने) स्वप्न में (दुर्गन्धंपाण्डुरं भीम) दुर्गन्ध से युक्त पाण्डुरंग वाला भयंकर (वाधिविकृतिम्) व्याधि से सहित विकृत (तापसं) तापसी को देखने पर (तस्य) उसको (ग्लानि) ग्लानि होती है (निरूपयेत्) ऐसा निरूपण करे।
भावार्थ-जो स्वप्न में दुर्गन्ध युक्त पाण्डुवर्ण वाला भयंकर व्याधि और विकृतियों से सहित तापस देखे तो उसको ग्लानि होगी ऐसा निरूपण करे ॥१२७॥