Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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परिशिष्टाऽध्यायः
( रक्त स्वरसूत्रैर्वा ) जो स्वप्न में अपने जिस अंग को लाल सूत्र एवं ( रक्तपुष्पैर्विशेषतः ) लाल पुष्प से विशेष कर ( यदङ्गं वेष्टयते) जिस अंग को (स्वप्ने) स्वप्न में वेष्टित करता है ( तदेवानं विनश्यति) तो उसी अंग में रोग होकर नाश हो जाता है।
भावार्थ - जो कोई स्वप्न में अपने अंग लाल सूत्र से एवं लाल पुष्पों से वेष्टित देखे तो समझो उसको उसी अंग में रोग होकर वह अंग नाश हो जाता है ।। १३१ ॥
द्विपो ग्रहो मनुष्यो वा स्वप्ने कर्षति यं नरम् । मोक्षं बद्धस्य बन्धे वा मुक्तिं च समादिशेत् ॥ १३२ ॥
( य नरम् ) जिस मनुष्य को (स्वप्ने) स्वप्न में (द्वीपो ग्रहों मनुष्योवा कर्षति ) हाथी, ग्रह, वा मनुष्य खींचता हुआ दिखाई देवे तो कारागार (मोक्षं बद्धस्य बन्धेवा ) में पड़े हुए व्यक्ति को मुक्ति मिल जाती है ( मुक्ति च समादिशेत् ) उसकी मुक्ति कही गई है।
भावार्थ - जिस मनुष्य को स्वप्न में हाथी, ग्रह व मनुष्य खींचे तो बन्धन में पड़े हुए व्यक्ति की मुक्ति हो जाती है ।। १३२ ॥
मधु छत्रं विशेत् स्वप्ने दिवा वा यस्य वेश्मनि ।
अर्थ नाशो भवेत्तस्य मरणं वा विनिर्दिशेत् ॥ १३३ ॥ (स्वप्ने) यदि स्वप्न में (मधु छत्रंविशेत्) मधुमक्खी का छाता (दिवावायस्य बेश्मनि ) दिन या रात्रि में जिसके घर में प्रवेश होता हुआ दिखे तो (तस्य ) उसका ( अर्थनाशो भवेत् ) धन नाश होगा (वा) और ( मरणं विनिर्दिशेत् ) मरण प्राप्त होता
है ।
भावार्थ-यदि स्वप्न में मधुमक्खी का छाता दिन व रात्रि में जिसके भी घर में प्रवेश करता हुआ दिखे तो उसका धन नाश वा मरण अवश्य होता है ।। १३३ ॥ विरेचनेऽर्थनाशः स्यात् छर्दने मरणं ध्रुवम् । पादपछत्राणां गृहाणां
ध्वंसमादिशेत ।। ९३४ ॥
वाहे जो स्वप्न में (विरेचनेऽर्थ नाशः स्यात्) मल जाता हुआ देखे उसके धन