Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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परिशिष्ाऽध्यायः
(स्वप्ने) स्वप्न में जिसके (स्वाङ्गे) शरीर में (घृत तैलादिभिः) घी, तैलादि का (वाभ्य) मालिश करते हुए (निशिपश्यति) रात्री में देखता है (यस्ततो बुद्धचते) और वह जाग जाता है तो (तस्य व्याधिः प्रजायते) उसको व्याधि उत्पन्न होती
भावार्थ-जो स्वप्न में अपने शरीर को घी तैलादि की मालिश करता हुआ रात्री में देखे और जाग जाय तो उसको व्याधि उत्पन्न होती है॥११८।।
रक्त वस्त्राद्यलङ्कारैर्भूषिता प्रमदानिशि।
यमालिङ्गतिसस्नेहा विपत्तस्य महत्यपि।।११९॥ जिसे स्वप्न में (निशि) रात्री के समय (रक्तवस्त्राद्यलगारै) लालवस्त्रादि अलंकारो से (र्भषिता) भूषित (प्रमदा) नारी का (यमालिङ्गति) जो आलिङ्गन करता है स्नेह तो (विपत्तस्यमहत्यपि) उसको महान विपत्ती आती है।
भावार्थ-जिसे स्वप्न में रात्रि के समय लाल वस्त्रादि अलंकारों से सहित होकर कोई स्त्री आलिङ्गन करती हुई दिखे तो समझो उसके ऊपर महान विपती आएगी ।। ११९ ।।
पीतवर्णप्रसूनैर्वालङ्कृता पीत वाससा।
स्वप्ने गृहति यं नारी रोगस्तस्य भविष्यति॥१२० ।। (यं) जो (स्वप्ने) स्वप्न में (पीतवर्णसूनैर्वालङ्कृता) पीले वर्ण के फूलों से सुसज्जित होकर (पीतवाससा) पीले वस्त्र पहनकर (नारीगृहति) स्त्री जिस व्यक्ति को छिपा लेती है (तस्यरोग भविष्यति) उसको रोग हो जाता है
भावार्थ-जो स्वप्न में पीले वस्त्र पहनकर पीले पुष्पों से अलंकृत होकर स्त्री अगर जिस व्यक्ति को छिपा लेती है उसको रोग उत्पन्न होता है।। १२० ।।
पुरीषं लोहितं स्वप्ने मूत्रं वा कुरुते तथा।
तदा जागर्ति यो मर्यो द्रव्यं तस्य विनश्यति ।। १२१ ॥ जो (स्वप्ने) स्वप्न में (लोहितं पुरीषं) लाल मल (वा मूत्रं कुरुते) वा लाल ही मूत्र करता है (तथा) और (मयों जाग्रर्ति) उसी क्षण जाग जाता है (तदा) तो (द्रव्यं तस्य विनश्यति) उसका धन नाश हो जाता है।