Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
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सितं छत्रं सितं वस्त्रं सितं कर्पूरचन्दनम्।
लभते पश्यति स्वप्ने तस्य श्री: सर्वतो मुखी ।। ११५॥
जो (स्वप्ने) में (सितंछत्रं सितंवस्त्रं) सफेद छेत्र सफेद वस्त्र (सिंतकर्पूर चन्दनम्) सफेद चन्दन व कपूर (लभते) प्राप्त करता हुआ (पश्यति) देखता है तो (तस्य) उसके (श्री लक्ष्मी (पार्वतोमुखी) का तरफ से उसके पास आती है।
भावार्थ-यदि स्वप्न में सफेद छत्र सफेद वस्त्र सफेद चन्दन व कपूर प्राप्त करता है तो उसको लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।। ११५।।
पतन्ति दशनायस्य निज केशाश्व मस्तकात्।
स्वधन मित्रयो शो बाधा भवति शरीरके । ११६ ।। (यस्य) जिसको स्वप्न में (पतन्ति दशना) दांत गिरते हुए दिखे और (निज केशाश्व मस्तकात्) अपने सिर के केश झड़ते हुए दिखे तो (स्वधन मित्रयो शों) स्वधन और मित्र का नाश होता है (बाधाभवति शरीर के) और शरीर को बाधा पहुंचती है।
भावार्थ-जो स्वप्न में अपने दांत गिरता हुआ देखे और अपने सिर के केश झड़ते हुए देखे तो स्वधन और मित्र का नाश होता है और शरीर को बाधा पहुंचती है।। ११६।।
दंष्ट्री श्रङ्गीवराहो वा वानरो मृगनायकः।
अभिद्रवन्ति यं स्वप्ने भवे त्तस्य महद्भयम् ।। ११७।। (यं) जिसके (स्वप्ने) स्वप्न में (दंष्ट्रीशृङ्गीवराहो वा) दांत वाले एवं सींग वाले सुकर वा (वानरोमृग नायकः) बंदर तथा सिंहादि (अभिद्रवन्ति) दौड़ते हुए देखता है (तस्यमहद्भयम् भवेत्) उसको महान भय उत्पन्न होता है।
भावार्थ-—जिसके स्वप्न में दांत वाले सींग वाले सूकर बंदर सिंह आदि दौड़ते हुए दिखाई दे तो उसको महान भय उत्पन्न होता है।। ११७ ।।
घृततैलादिभिः स्वाङ्गे वाभ्यङ्गं निशि पश्यति। यस्ततो बुद्धचते स्वप्ने व्याधिस्तस्य प्रजायते ।। ११८।।