Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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परिशिष्टाऽध्यायः
भावार्थ- जो कोई स्वप्न में मल, मूत्र, रक्त, वीर्य और चर्वी को घृणा __ से रहित होकर खावे तो उसका शोक छूट जाता है॥९८ ।।
वृषकुञ्चर प्रासाद क्षीर वृक्षशिलोच्चये। ___ श्वारोहणं शुभस्थाने दृष्टमुन्नति कारणम्॥९९॥
जो व्यक्ति स्वप्न में (वृष कुञ्जर प्रासाद) बैल, हाथी, महल, (क्षीर वृक्षशिलोच्चये) पीपल, बड़, पर्यत एवं (श्वारोह शुभ स्थाने) थोड़े की सवारी, शुभस्थान में (दृष्टं) देखे तो (उन्नतिकारणम्) उन्नति का कारण होगा ऐसा समझो।
भावार्थ-जो व्यक्ति स्वप्न में बैल, हाथी, महल, पीपल बड़ पर्वत एवं घोड़े की सवारी देखे तो उन्नति का कारण होगा ऐसा समझो।। ९९ ।।
भूपकुञ्जरगोवाह धन लक्ष्मी मनोभुवाः ।
भूषितानामलङ्करै दर्शनं विधिकारणम् ॥१०० ।। जो स्वप्न में (भूपकुञ्जरगोवाह) राजा, हाथी, गाय, सवारी, (धनलक्ष्मी मनोभुवी:) धन लक्ष्मी, कामदेव, (भूमितानामलङ्करै) अलंकार आभूषण का (दर्शन) दर्शन करे (विधिकारणम्) तो उसके भाग्य की वृद्धि होती है।
भावार्थ-जो स्वप्न में राजा, हाथी, गाय, सवारी, धन, लक्ष्मी कामदेव अलंकार आभूषण का दर्शन करे तो उसके भाग्य की वृद्धि होती है।। १०० ।।
पयोधि तरति स्वप्ने भुङक्तेप्रासाद मस्तके।
देवतो लभते मन्त्रं तस्य वैश्चर्यमद्भुतम् ॥१०१॥ (स्वप्ने) स्वप्न में जो व्यक्ति (पयोधिरतति) समुद्र को पार करता हुआ देखे (भुङक्ते प्रासाद मस्तके) महल के ऊपर खाता हुआ देखे (दैवत: लभते मन्त्रं) वा किसी देवता के द्वारा मंत्र पार करता हुआ देखे (तस्य वैश्वर्यमद्भुतम्) तो उसको अद्भूत ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है
भावार्थ-जो स्वप्न में समुद्र को पार करता हुआ देखे, महल के ऊपर खाता हुआ देखे वा किसी भी देवता के द्वारा मंत्र प्राप्त करता हुआ देखे तो उसको महान ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।। १०१॥