Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रमा संहिता
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शयनाशनर्ज पानं गृहं वस्त्रं स भूषणम्।
सालङ्कारं द्विपं वाहं पश्यन् शर्मकदम्बभाक् ।। १५ ।। जो स्वप्न में (शयनाशन जंपानं) शयन, आसन्, पान, (गृहंवस्त्रसभूषणम्) गृह वस्त्र और भूषण (सालङ्कारं द्विपं वाहं पश्यन्) अलंकार, हाथी, वाहन (पश्यन्) देखता है। (शर्मकदम्बभाक्) तो उसे सुख मिलता है।
भावार्थ—जो स्वप्न में शयन, आसन, पान गृह वस्त्र आभूषण अलंकार हाथी वाहन देखता है उसे सभी प्रकार सुख मिलता है ।। ९५ ॥
पताकामसियष्टिं च पुष्प माला सशक्तिकाम्।
काञ्चनं दीप संयुक्तं लात्वा बुद्धो धनं भजेत् ।। ९६॥ यदि स्वप्न में (पताका मसियष्टिं च) ध्वजा, तलवार, लकड़ी और (पुष्प मालां) पुष्प माला (सशक्तीकाम्) शक्ति देखे वा (काञ्चनंदीप संयुक्त) सोने के दीप में (लात्वा) लाकर देखे तो (बुद्धो धनं भजेत्) बुद्धिमान धन को प्राप्त करता है।
भावार्थ-यदि स्वप्न में ध्वजा तलवार लकड़ी और पुष्पमाला को देखे एवं सोने के दीप से देखे तो धन की प्राप्ति होती है।। ९६ ।।
वृश्चिकंदन्दशूकं वा कीटकं वा भयप्रदम्। निर्भयं लभते यस्तु धन लाभो भविष्यति ॥९७।।
जो स्वप्न में (वृश्चिकं दन्द सूकंवा) बिच्छ सांप वा (कीटकं वा भय प्रदम्) अन्य भयप्रद कीडों को (यस्तु) जो (निर्भय) निर्भय होकर (लभते) प्राप्त करे उसे (धनलाभो भविष्यति) धन का लाभ प्राप्त होता है।
भावार्थ-जो स्वप्न में बिच्छु सांप वा अन्य भय उत्पन्न करने वाले कीड़ों को निर्भय होकर प्राप्त करे उसे धन का लाभ मिलता है।। ९७।।
पुरीषं छर्दितं मूत्रं रक्तं रेतो वसान्वितम्।
भक्षयेत् घृणया हीनस्तस्य शोक विमोचनम् ।। ९८ ।।
जो स्वप्न में (पुरीषंछर्दितं मूत्रं) मल, उल्टी, मूत्र (रक्तं रेतों वसान्वितम्) रक्त चर्बी, वसा को (धृणया हीनः भक्षयेत्) घृणा से रहित होकर खाता हुआ देखें (तस्य) उसका (शोक विमोचनम्) शोक नष्ट हो जायगा।