Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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परिशिष्टाऽध्यायः
भावार्थ-जो स्वप्न में लाल पुष्पों से अलंकृत करके नृत्य करते हुए बांधकर अगर दक्षिण दिशा की ओर ले जाया जाय तो एक महीने की आयु समझो।। ९१ ।।
तैलपूरितगर्तेयो रक्त कीकसपूरिभिः ।
स्वं मग्नं वीक्षते स्वप्ने मासार्द्ध म्रियते स वै॥ ९२ ।। (स्वप्ने) स्वप्न में (स्वं) स्वयं को (लैतपूरितगर्तेयो) तैल से भरे हुए गड्ढ़े में और (रक्त कीकसपूरिभिः) रक्त मांस चर्बी से पूरित गड्ढ़े में (वीक्षते) देखे तो (मत्सार्द्धभ्रियतेस वै) वह आधे महीने में ही मर जायगा।
भावार्थ-जो स्वप्न में स्वयं को तैल से भरे हुए गड्ढे में वा खून, मांस और सर्बि आदि के गड्ढ़े में देखे तो उसकी मृत्यु पंद्रह दिन में हो जाती है।। ९२॥
बन्धनेऽथ वरस्थाने मोक्षे प्रयाण के ध्रुवम्।
सौर भेये सितेदृष्टे यशो लाभो निरन्तरम् ।। ९३ । ।। स्वप्न में (सौर भेयेसिते दृष्टे) सफेद गाय देखी जावे जो (बन्धनेऽथ वरस्थाने) बंधी हुइ हो श्रेष्ठ स्थान पर हो (मोक्षे) खुली हुई हो (प्रयाण के धूवम्) प्रयाण करती हुई हो तो निश्चय से (यशोलाभं निरन्तरम्) उसको यश का लाभ होता
भावार्थ-जो स्वप्न में सफेद गाय को बंधी हुई देखे श्रेष्ठ स्थान पर देखे, खुली हुई देखे गमन करती हुई देखे, तो निश्चय से यश की प्राप्ति होती है।। ९३ ॥
नदीवृक्ष सरोभूभृत् गृह कुम्भान् मनोहरान् ।
स्वप्ने पश्यति शोकार्त: सोऽपि शोकेन् मुच्यते ।। ९४॥ (शोकात:) शोक से पीड़ित (स्वप्ने) स्वप्न में (नदी, वृक्ष, सरोभूभृत:) नदी, वृक्ष सरोवर पर्वत (गृहकुम्भान मनोहरान्) गृह मनोहर कुम्भ (पश्यति) देखता है तो (सोऽपि शोकेनमुच्यते) वह भी शोक से छूट जाता है।
भावार्थ-शोक से पीड़ित व्यक्ति यदि स्वप्न में नदी, वृक्ष, सरोवर पर्वत घर मनोहर कलश देखता है तो वह भी शोक से छूट जाता है।। ९३॥