Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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परिशिष्टाऽध्यायः
भावार्थ- स्वप्न में परिवार का छत्र भंग निमित्त ज्ञानी देखे तो राजा वे परिवार की निश्चित ही मृत्यु होती है ॥ ८५ ॥
विलयं याति य: स्वप्ने भक्ष्यते ग्रह अथ करोति यश्छर्दि मासयुग्मं स (स्वप्ने) जो स्वप्न में (विलयं याति ) विलीन होता हुआ देखे वा ( ग्रह वायसैः भक्ष्यते) कौआ गृध से अपना मांस भक्षण करता हुआ देखे एवं (अथयश्छर्दिं करोति) शर्बी आदि का वमन देखे तो (मासयुग्मं स जीवति) उसकी आयु दो महीने की समझो
वायसैः । जीवति ॥ ८६ ॥
भावार्थ जो स्वप्न में स्वयं को विलीन होता हुआ देखे वा स्वयं का मांस गृद्ध पक्षी एवं कौवे खाते हुए देखे अथवा शर्बी का मन देखे तो दो महीने की आयु समझो || ८६ ॥
महिषोष्ट्र खरारूढो नीयते दक्षिणां तैलादिभिर्लिप्तो मासमेकं स
दिशम् । जीवति ।। ८७ ।।
घृत
यदि स्वप्न में (महिषोष्टखरारुढो) भैंस, ऊँट, गधा की सवारी करके (दक्षिणां दिशम् नीयते) दक्षिण दिशा की और ले जाया जाय वा (घृत तैलादिभिर्लिप्तो) घी, तेल आदि से लिप्त देखे तो (मासमेकं स जीवति ) एक महीने में मरण हो
जाता है।
भावार्थ-यदि स्वप्न में महिष ऊंट, गधा की सवारी कर अगर दक्षिण दिशा की और ले जाय या घी, तेल आदि से अपने को लिप्त देखे तो एक महीने की आयु शेष रह गई है ऐसा समझो || ८७ ॥
ग्रहाणं रवि चन्द्राणां नाश वा पतनं
भुवि ।
रात्रौपश्यति यः स्वप्ने त्रिपक्षं तस्य जीवनम् ॥ ८८ ॥
(यः) जो ( रात्रीस्वप्नेपश्यति) रात्रि में स्वप्न में ( रविचन्द्राणां ग्रहाणं ) सूर्य
वा चन्द्रमा का ग्रहण देखे वा ( ( नाशं वा पतनं भुवि ) नाश देखे भूमि पर या गिरता हुए देखे तो (तस्य त्रिपक्षं जीवनम् ) तीन पक्ष का उसका जीवन समझो ।