Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
७८३
परिशिष्टाऽध्यायः
भावार्थ—स्वप्नों का फल पहले अध्यायों में मैंने किया है अब निमित्त पाकर जो कुछ भी बचा है उसको यहाँ पर कहूँगा॥७९ ।।
दशपञ्च वर्षस्तथा पञ्चदशदिनैः क्रमतः ।
रजनीनां प्रतियामं स्वप्नः फलत्ये वायुष: प्रश्ने ।। ८०॥ (रजनीनांप्रतियामं स्वप्नः) रात्रि के प्रत्येक प्रहर में देखे गये स्वप्न (क्रमतः) क्रमश: (दशपञ्च वस्तथा पञ्चदशदिने) दस, पाँच-पाँच दिन तथा दस दिन में (फलत्येवायुषःप्रश्ने) प्रश्नों का फल फलित होता है।
भावार्थ-रात्रि के प्रत्येक प्रहर में देखे गये स्वप्न क्रमश: दस वर्ष पाँच वर्ष पाँच दिन दस दिन में फल देते हैं।। ८०॥
शेष प्रश्नविशेषे द्वादशषत्र्येकमासकैरेव।
स्वप्नः क्रमेण फलति प्रतियामं शर्वरी दृष्टः ।। ८१॥ मात्र आयु को छोड़कर (शेष) बाकी (प्रश्नविशेषे) स्वप्न प्रश्न के विशेष में (द्वादश षट्व्येक मासकैरेव) बारह, छह, तीन, एक महीने में (स्वप्न:) स्वप्न (क्रमेण) क्रमश: (फलति) फल देता है (प्रतियामं शर्वरी दृष्ट:) प्रत्येक प्रहर के अनुसार।
भावार्थ-आयु को छोड़कर शेष प्रश्न स्वप्न को विशेष विषय में बारह, छह, तीन और एक महीने में प्रत्येक प्रहर में क्रमश: फल देता है प्रथम प्रहर का स्वप्न बारह महीने में द्वितीय प्रहर का स्वप्न छह महीने में तृतीय प्रहर का तीन और अन्तिम प्रहर का स्वप्न एक महीने में वा शीघ्र फल देता है।। ८१॥
(जिनबिम्ब के दर्शन का फल) कर चरण जानुमस्तकजङ्घासोदरविभङ्गिते दृष्टे।
जिनविम्बस्य च स्वप्ने तस्यफलं कथ्यते क्रमशः ।। ८२।।
अब (क्रमश:) क्रम से (कर, चरण, जानु, मस्तक) हाथ, पाँव, घुटने मस्तक (जला सोदर विभङ्गिते दृष्टे) जांघ, पेट के भंगित होने पर वा (जिनविम्बस्य) जिनविम्ब के (स्वप्ने) स्वप्न में दिखाई देने पर (तस्यफलं कथ्यते) उसके फल को कहता हूँ।