Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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परिशिष्टाऽध्यायः
पादहीने नरे दृष्टे जीवितं वत्सरत्रयम्।
जवाहीने समायुक्तं जानुहीने च वत्सरम्॥७४।। मंत्रवादि जिस भी रोगी को छाया पुरुष का (पादहीने नरे दृष्टे) पाँव हीन दिखे तो वह (वत्सरत्रयम् जीवितं) तीन वर्ष का जीवेगा और (जङ्गाहीने समायुक्तं) जंघा से हीन दिखे (जानुहीने च वत्सरम्) और जानु से हीन दिखे तो एक वर्ष जीता है।
भावार्थ-मंत्रवादि जिस भी व्यक्ति की छाया अवलोकन करे और वो छाया पुरुष का पाँव नहीं दिखे तो समझो तीन वर्ष तक जीवेगा, जंघा रहित व घुटने से रहित छाया पुरुष दिखे तो एक वर्ष जीवेगा, उसकी अब ज्यादा आयु नहीं है।। ७४॥
उरोहीने तथाष्टादशमासा नापि जीवति।
पञ्चदश कटिहीनेऽष्टी मासान् हृदयं बिना ॥७५ ।।
उसी प्रकार छाया पुरुष का (उरोहीने) उर रहित हो तो (तथाष्टादश मासा नापि जीवति) अठारह महीने जीवेगा, (कटि हीने) कमर नहीं दिखे तो (पञ्चदश) पन्द्रह महीने तक जीवेगा, (हृदयं बिनाऽष्टौमासान्) हृदय नहीं दिखे तो आठ महीने तक जीवेगा।
भावार्थ-यदि छाया पुरुष का उर नहीं दिखे तो अठारह महीने तक ही जीवेगा, कटि नहीं दिखे तो पन्द्रह महीने तक जीवेगा, हृदय नहीं दिखे तो आठ महीने तक ही जीवेगा ।। ७५ ॥
षड्दिनं गुह्महीनेऽपि कर हीने चतुर्दिनम्।
बाहु हीने त्वहर्युग्मां स्कन्ध होने दिनैककम् ।। ७६।। यदि छाया पुरुष का (गुह्यहीनेऽपि षड्दिन) गुह्यहीने दिखे तो छह दिन की आयु समझो (करहीने चतुर्दिनम्) हाथ नहीं दिखे तो चार दिन की आयु समझो, (बाहुहीनेत्वहर्युग्मा) बाहु से रहित दिखे तो दो दिन की आयु रहती है (स्कन्ध हीने दिनैककम्) अगर स्कन्ध हीन दिखे तो एक दिन की आयु समझो।
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